Wednesday, October 28, 2009
फिर कटघरे में मीडिया!
पता नहीं क्यों बार-बार बिरादरी मीडिया के कुछ लोग शर्म-लाज का त्याग कर चौराहे पर नृत्य करने लगते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि उनकी करतूत से बदनाम पूरी की पूरी मीडिया बिरादरी होती है। सनसनी- झूठी- पैदा कर सुर्खियां बटोरने वाले ऐसे मीडियाकर्मी पत्रकारीय मूल्यों के साथ दिन की रोशनी में सरेआम बलात्कार ही नहीं करते, उनकी हत्या भी कर देते हैं। मंगलवार को कुछ टीवी चैनलों पर खबर प्रसारित की गई कि भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के सुझाव को 'एक पागल' का सुझाव बताया है। एक समाचार एजेंसी ने भी ऐसी खबर प्रसारित कर पूरे देश में हड़कंप मचा दिया। सभी चकित कि ऐसा कैसे संभव है कि भाजपा अध्यक्ष संघ प्रमुख को पागल करार दें। आश्चर्यजनक रूप से दिन भर चली ऐसी खबर की पुष्टि करने की जरूरत किसी ने नहीं समझी। कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी व्यक्ति विशेष अथवा दल विशेष के इशारे पर एक षडय़ंत्र के तहत जानबूझकर ऐसी खबर प्रसारित की गई? संभवत: कुछ 'आकाओं' को खुश करने के लिए! ध्यान रहे, भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह आज (बुधवार) नागपुर पहुंचने वाले हैं। विधानसभा चुनाव में विजयी भाजपा उम्मीदवारों के अभिनंदन कार्यक्रम में वे शिरकत करेंगे। नागपुर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मुख्यालय है। भाजपा का शीर्ष इन दिनों पार्टी में जारी अंतर्कलह से जूझ रहा है। राजनाथ सिंह का कार्यकाल दिसंबर माह में समाप्त हो रहा है। नए अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा नेतृत्व संघ प्रमुख का हस्तक्षेप चाहता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शर्त रखी थी कि अगर पार्टी के सभी लोग उनकी बातों को मानने को तैयार होंगे तभी वे हस्तक्षेप करेंगे। और तब राजनाथ सिंह और लालकृष्ण आडवाणी दोनों ने भागवत की बात मानने का वचन दिया। यह तथ्य अपनी जगह विद्यमान है। शरारतपूर्ण झूठी खबरें जारी करने वाले मीडिया कर्मियों को, अगर वे सचमुच गंभीर राजनीतिक समीक्षक हैं, इस सचाई की जानकारी तो होनी ही चाहिए। जब वो संघ व भाजपा से संबंधित खबरें बना रहे थे, तब उन्हें 'होमवर्क' कर लेना चाहिए था। विश्वसनीयता के संकट से गुजर रहे भारतीय मीडिया को कृपया पूर्वाग्रही पत्रकार लांक्षित न करें। बात भाजपा या संघ की नहीं है। पूरी की पूरी पत्रकार बिरादरी की विश्वसनीयता, मान-सम्मान की है। कोई बाहरी तो इसकी रक्षा करेगा नहीं? फिर खुद को नंगा करने की ऐसी कवायद क्यों? प्रसंगवश, 1992 की एक घटना का उल्लेख करना चाहुंगा। राजधानी दिल्ली के एक बड़े अंग्रेजी अखबार ने एक केंद्रीय मंत्री के 'पुत्र' के कारनामों की एक सनसनीखेज खबर छापी थी। बेचारे मंत्री अवाक! क्योंकि मंत्री महोदय अविवाहित थे। उनका कोई पुत्र ही नहीं था। तब उस घटना को लोगों ने अखबारी टुच्चापन निरूपित किया था। हम तब भी शर्मिंदा हुए थे, आज भी शर्मिंदा हो रहे हैं। क्या शर्मिंदगी की इस निरंतरता पर कभी पूर्ण विराम लग पाएगा?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
कल से मैं भी इस खबर की सच्चाई जानने का प्रयास कर रही हूँ लेकिन मीडिया ने एकबार भी राजनाथ सिंह को बोलते हुए नहीं दिखाया है। सर संघ चालकजी की बात को भी तोड़-मरोड़कर पेश करने का पूरा प्रयास किया गया है। यह मीडिया इस देश को तबाह कर देगा। अब आवश्कता है कि कुछ सिरफिरे मीडियाकर्मियों को निकाल बाहर किया जाए। यह आन्दोलन वरिष्ठ लोगों को हाथ में लेना चाहिए।
Post a Comment