एक सीधा सवाल सरकार से और आम जनता से भी। 15 हजार से अधिक लोगों को मच्छरों की तरह मार डालने के अपराधी को बचाने वाले को सत्ता में बने रहने का अधिकार है? सत्ता पक्ष के ऐसे आपराधिक कृत्य पर क्या देश तटस्थ बना रहेगा? भोपाल गैस त्रासदी पर आए फैसले के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी बी.आर. लाल के आरोप को सच मानें तब यह साफ है कि सरकार ने भोपाल जनसंहार के मुख्य दोषी अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन को बचाने की कोशिश की थी। बल्कि बचा ले गई। क्योंकि अमेरिका ने साफ कह दिया है कि वह एंडरसन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगा। रही बात सरकार की तो हमारे कानून मंत्री वीरप्पा मोईली भले ही यह कहते फिरें कि एंडरसन के खिलाफ मामला बंद नहीं हुआ है, वह और उनकी केंद्र सरकार एंडरसन का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। 89 वर्षीय एंडरसन अमेरिका में हैं और आराम से बेफिक्र हैं।
अभी कल ही मैंने अमेरिकी एंडरसन के मामले में सरकार की 'नीयतÓ पर संदेह प्रकट किया था। आज लाल के बयान से संदेह की पुष्टि हो गई। सीबीआई के इस पूर्व अधिकारी लाल का खुलासा सनसनीखेज व शर्मनाक है कि तब भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने सीबीआई को लिखित आदेश दिया था कि वह एंडरसन के प्रत्यर्पण के लिए जोर न दे। साफ है कि भारत सरकार एंडरसन को बचाना चाहती थी। यह एक अत्यंत ही विस्फोटक खुलासा है। सरकार को यह बताना ही होगा कि उसने 15 हजार से अधिक भारतीयों की हत्या के जिम्मेदार एंडरसन को क्यों बचाया? विदेश मंत्रालय ने सीबीआई को पत्र किसके निर्देश या इशारे पर लिखा था? यह तो निर्विवाद है कि निर्देश या संकेत उच्च स्तर से आए होंगे। कौन है वह व्यक्ति जिसे हजारों भारतीयों की मौत से ज्यादा एक अमेरिकी एंडरसन की फिक्र थी? सरकार को कारण भी बताना होगा। आज पूरा देश इस खुलासे पर उद्वेलित है। देश के लोग पूछ रहे हैं कि अगर भोपाल गैस कांड जैसी त्रासदी अमेरिका में हुई होती और कारक कोई भारतीय होता तो क्या अमेरिकी सरकार भारत की तरह मौन रहती? अदालती फैसले के बाद ही यह जाहिर हो गया था कि अभियोजन पक्ष ने जानबूझकर मामले को लचर व कमजोर बना डाला था। नतीजतन एंडरसन तो बच ही निकला, अन्य दोषी भी मात्र 2 साल की सजा पा सके। पीडि़तों के घावों पर नमक छिड़कते हुए दोषियों को तत्काल जमानत पर रिहा भी कर दिया गया। लेकिन अब और नहीं। भारत देश की जनता संयमी हो सकती है, नपुंसक कदापि नहीं। इस मामले में वह शांत रहने वाली नहीं। केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोईली की दलील कि विदेश मंत्रालय के आदेश को अस्वीकार करते हुए सीबीआई को एंडरसन के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी, एक हास्यास्पद बात है। हमारी राजनीतिक व्यवस्था अधिकारियों का मनोबल तोड़ती रही है। अनेक अधिकारियों ने समय-समय पर शासकों के खिलाफ कदम उठाने की कोशिशें की हैं किन्तु उन्हें प्रताडि़त कर कुचल डाला गया। बावजूद इसके बेहतर अवश्य होता अगर हिम्मत दिखाते हुए बी.आर. लाल उसी समय विदेश मंत्रालय के पत्र का खुलासा कर देते। मामला चूंकि हजारों नागरिकों की मौत का था, पूरा देश उन्हें अपने कंधों पर उठा लेता। उन्हें सुरक्षा कवच देश के लोग ही प्रदान करते। लाल वहां चूक गए। खैर अपनी गलती को सुधारते हुए उन्होंने अब खुलासा कर भारत सरकार की नीयत को कटघरे में खड़ा कर दिया है तो इसकी पूरी जांच कर सच को सामने लाया जाना चाहिए। अगर लाल का खुलासा सच साबित होता है तब विदेश मंत्रालय के तत्कालीन मंत्री व अधिकारियों के खिलाफ हजारों की हत्या के आरोपी को बचाने के आरोप में मामला चलाया जाना चाहिए। एंडरसन को बचाने वाले निश्चय ही देशद्रोही हैं।
7 comments:
kuchh nhi hoga ghiste rho kalam.....aapki post bahut achhi hai... pr ........ kuchh nhi hoga ... ..... pragat ho jae prabhu aur nyay dila de to bat alag hogi...
विनोद जी, जिस देश मे सरकार द्वारा उन अपराधीयों को भी क्लीन चिट दे दी जाती हो.....जो ८४ के दंगें व गौधरा कांड से संबध रखते हो.....उन से कोई उम्मीद बाधँन बेवकूफी के सिवा कुछ नही है...
विनोद जी, उस समय तो सौ घरों में भी एक टीवी नहीं होता था, आपको लगता है कि लाल साहब अगर सच बता देते तो तूफान आ जाता! कुछ नहीं होता चार्जशीट कर दिये जाते और पेंशन भी नहीं मिलती. भूरे लाल जी अब झूठ बोलकर अपने लिये कौन सा महल खड़ा कर लेंगे. वे दुष्ट नेता जो पूरे सम्मान के साथ एंडरसन को विदाई देते हैं और एक बिल बनाकर गैस पीड़ितों की बगल में छुरी घोंप देते हैं, वे अफसर जो धाराओं को बदलवा देते हैं, सही मायनों में फांसी के हकदार हैं...ऊपर से बेशर्मी देखिये कि नेता भूरे लाल जी को ही अपराधी सिद्ध कर रहे हैं...
सबसे बड़ा देश द्रोही तो वो है जो अपने फायदे के लिए बिना वांछित योग्यता के एक विदेशी महिला का कृपापात्र बना हुआ है और इस देश की ऐसी तैसी करवा रहा है !
देशद्रोही का नाम लेने में लोग डरते क्यों हैं - इस लिए कि स्वतंत्र देश में भ्रष्टाचार ने सही बात कहने वाले को मात्र जीने की ही नहीं चेन से रहने देने की भे आजादी हड़प ली है - छाती जनता की मूंग दले मंत्री क्या कर लेगा कोइ
बेशर्मों की फौज देश चला रही है सब लूट कर खा रहे हैं एक दुसरे को बचा रहें हैं शरद पवार को क्या कहोगे
गोदियाल जी से सहमत ये जोड़ते हुए कि वो भी गद्दार हैं जो इन गद्दारों का साथ दे रहे हैं।
बुद्धिजीवियों के लिएपत्रकारिता एक जनून है सच्चाई को उजागर करने के लिए पर परजीवियों के लिए ये साधन है पैसे लेकर झूठ फैलाने का।
andher nagri, choupat raja..wala system chal reha he Bharat desh me, vinod shaeb jab tak Italy aunti ka raaj he tab tak kuch nahi hone wala!!!? ab faisla janta ko hi karna hoga ki vo kya chahti he!!!
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