Wednesday, June 23, 2010
जेठमलानी की बद्तमीजी, मीडिया का मौन!
''... तुम मीडिया वालों को कांग्रेस ने खरीद रखा है ... तुम अनएज्युकेटेड हो ... अंग्रेजी नहीं जानते ...बदतमीज हो ...गेट आउट... निकल जाओ यहाँ से!'' ये अशिष्ट, आक्रामक शब्द हैं भारतीय जनता पार्टी के नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य, जानेमाने ज्येष्ठ वकील राम जेठमलानी के। जेठमलानी ने सीधे तौर पर मीडिया को कांग्रेस का जरखरीद गुलाम और अशिक्षित बताते हुए स्टार न्यूज चैनल के वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी दीपक चौरसिया को अपने घर से निकाल बाहर कर दिया। जेठमलानी यह टिप्पणी करने से नहीं चूके कि तुम मेरी मेहमाननवाजी का बेजा इस्तेमाल कर रहे हो। चौरसिया चैनल के एक कार्यक्रम के लिये रामजेठमलानी का साक्षात्कार लेने पूर्व निर्धारित समय पर गये थे। जेठमलानी अपनी सनक मिजाजी के लिये कुख्यात हैं। चौरसिया के पहले अन्य कुछ चैनलों के कार्यक्रम में भी वे बदतमीजी से पेश आ चुके हैं। सनकमिजाजी ऐसी कि 1990 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया था और चंद्रशेखर कांग्रेस की मदद से सरकार बनाने की जुगत कर रहे थे (जो बाद में बनी भी) तब विरोध स्वरूप जेठमलानी चंद्रशेखर के घर के बाहर धरने पर बैठ गये थे। कहते हैं कि धरने पर बैठे जेठमलानी की कुछ बातों से चंद्रशेखर उग्र हो उठे थे। उन्होंने इशारा किया और फिर उनके एक समर्थक पहलवान नेता ने रामजेठमलानी की पिटाई कर डाली थी। लगता है जेठमलानी की आदतें गई नहीं हैं, सो उन्होंने दीपक चौरसिया के जरिये मीडिया को निशाने पर ले लिया। कांग्रेस सरकार को भ्रष्ट, चोर, बेईमान बतानेवाले जेठमलानी को भारतीय जनता पार्टी सहन करती रहे, हमें आपत्ति नहीं! किंतु जब वे मीडिया के साथ राज ठाकरे या शिवसैनिकों की तरह बदतमीजी ने पेश आते हैं, तब उन्हें उनकी हैसियत बताई जानी चाहिए। फिर दीपक चौरसिया और उनका चैनल स्टार न्यूज जेठमलानी की बदतमीजी पर तटस्थ क्यों बने रहे? अन्य मौकों पर अपने ऊपर कोई आक्रमण का हमेशा प्रतिवाद करनेवाला मीडिया जेठमलानी मुद्दे पर शांत क्यों? अगर यह रवैया उपेक्षा की श्रेष्ठ नीति की तहत अपनाया गया है, तब भी आसानी से यह किसी के गले से उतरनेवाली नहीं। जेठमलानी के द्वारा चौरसिया का अपमान किसी बंद कमरे में नहीं हुआ था। बल्कि सब कुछ कैमरे के सामने और लाखों लोगों ने पूरी घटना को टेलीविजन पर देखा भी। ऐसे में घटना की उपेक्षा सहज नहीं। ऐसे ''मौन'' को मीडिया ही स्वीकारोक्ति निरूपित करता आया है। तो क्या राम जेठमलानी के आरोप को स्टार न्यूज ने स्वीकार कर लिया है? विश्वास नहीं होता कि जेठमलानी के निहायत घटिया शब्दों को स्टार न्यूज जैसा प्रतिष्ठित चैनल स्वीकार कर ले। दीपक चौरसिया की पहचान एक निडर, लब्धप्रतिष्ठित पत्रकार के रूप में है। सटीक राजनीतिक विश्लेषण के लिये वे पहचाने जाते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि पूरी घटना पर चौरसिया ने भी मौन साध रखा है। जेठमलानी जब उनके प्रश्न पर आपा खो बदतमीजी पर उतर आये थे, तब शांत रहकर चौरसिया ने अपनी शिष्टता का परिचय दिया था, यह तो ठीक है। किंतु जब जेठमलानी ने पूरे मीडिया को बिकाऊ बेईमान, अशिष्ट, गैरजिम्मेदार और अशिक्षित करार दिया, तब घटना के बाद किसी अन्य कार्यक्र्रम या मंच से विरोध तो होना ही चाहिए था। मैं पहले बता चुका हूं कि उपेक्षा की नीति यहां स्वीकार नहीं की जा सकती। जिन लाखों दर्शकों ने जेठमलानी को चौरसिया और मीडिया पर आरोप लगाते, गरजते-बरसते देखा, वे भी मीडिया के इस मौन पर अचंभित हैं। इस मौन को स्वीकारोक्ति माननेवालों की भी कमी नहीं है। कोई करेगा इनका प्रतिकार!
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11 comments:
कल अगर एंडरसन के खिलाफ मुकदमा चल निकला तो यही जेठमलानी अदालत में उस की पैरवी करता नजर आएगा। यह डालर का गुलाम है सनकी क्यों न होगा?
अगर इस देश में कोई सबसे बड़ा सनकी है तो वो है राम जेठमलानी। लोक सभा चुनाव में लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ खड़े होकर उसने जैसी बातें उनके खिलाफ कही थी उसके बाद इस बात को पचाना बहुत मुश्किल हो रहा था कि BJP उसे अपना उम्मीदवार बनाकर राज्य सभा में भेज रहा है। ऐसी सनक सिर्फ जेठमलानी में ही पायी जा सकती है ओर ऐसी बेतुकी राजनीति सिर्फ BJP में ही मिल सकती है।
http://draashu.blogspot.com
यह निश्चित ही चौरसिया का निजी अपमान नहीं है स्टार न्यूज या सामूहिक रूप से मीडिया का हो सकता है .....मीडिया में सचमुच वह नैतिक साहस नहीं है जो इस अपमान के बाद उसे मुखर कर सके ....याद है दिवंगत काशीराम ने मीडिया को ऐसी ही चपत लगाकर जलील कर दिया था ..अब मीडिया की हालत वही है सौ सौ जूते खाए तमाशा घुस के देखे ...और अब मीडिया का शायद सबसे मुखर उद्घोष वाक्य यही बने ! ...
चलिए प्रायोजित ख़बरों में रमिये न ......
जेठमलानी डालर के गुलाम हों, सनकी हों, पागल हों… चाहे जैसे भी हों लेकिन आज मीडिया क्या है? जेठमलानी ने सिर्फ़ आईना दिखाया है…। मीडिया में अब इतना "नैतिक साहस" नहीं बचा कि वह जेठमलानी या किसी अन्य का विरोध कर सके।
जो मीडिया मनमोहन सिंह की बहुप्रतीक्षित प्रेस कान्फ़्रेंस में "आप दो महिलाओं के बीच सन्तुलन कैसे साधते हैं"? जैसे बेहूदे और अनर्गल सवाल पर अपना फ़ोकस केन्द्रित किये हो, जिस मीडिया में सोनिया गाँधी से सीधे एक सवाल करने की हिम्मत नहीं हो, जिस मीडिया को राहुल बाबा अपने दरवाजे का कुत्ता समझते हों… उसकी औकात नहीं है कि वह कुछ बोले।
देश में समस्याओं का अम्बार लगा हुआ है (जो अधिकतर कांग्रेस की देन हैं) और यदि फ़िर भी मीडिया को कैटरीना की साड़ी और अभिषेक की रावण रिलीज में अधिक रुचि हो तब ऐसे मीडिया को लतियाकर जेठमलानी ने ठीक ही किया…
मीडिया भी (इलेक्ट्रानिक) कोई कम नहीं है..
''...तुम मीडिया वालों को कांग्रेस ने खरीद रखा है... तुम अनएज्युकेटेड हो... अंग्रेजी नहीं जानते... बदतमीज हो... गेट आउट... निकल जाओ यहाँ से!'' विनोद जी व्यक्तिगत विद्वेष जेठमलानी से हो तो बात अलग है, परन्तु जेठमलानी ने मिडिया के बारे में गलत क्या कहा है. क्या आज की मिडिया चाहे प्रिंट हो या इलेक्ट्रोनिक कोंग्रेस की चरण चारण नहीं करती? क्या एक भी राष्ट्रीय चैनल की हिम्मत है सोनिया मनमोहन से उसकी इच्छा के विपरीत सवाल पूछने की या आरोप लगाने की?
क्या आज की मिडिया लोकतंत्र की चौथा स्तम्भ कहलाने लायक है? क्या एक भी मिडिया घराना ऐसा है जिसकी वास्ता जनसरोकार से हो? क्या आज की मिडिया पूंजीपति की रखैल नहीं है ? क्या आज का पत्रकार विज्ञापन एजेंट बनकर नहीं रह गया ? क्या संपादक का काम मुनाफा कमाकर मालिकों का जेब भरना नहीं रह गया? तो ऐसे में जब मिडिया अपने दायित्व से विमुख हो चूका है लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ नहीं रहा, संपादक संपादक नहीं रहा पत्रकार पत्रकार नहीं रहा तो फिर आपको जेठमलानी के शब्दों से इतना मिर्ची क्यों लगा? इससे कोई इंकार नहीं कर सकता की आज भी मिडिया में बहुत सारे अच्छे पत्रकार संपादक है, परन्तु उनको कितनी आजादी मिला हुआ है अपनी दायित्व सही से निभाने के लिए.
ये एक खुला सच है की एक मिडिया संसथान चलाने के लिए बहुत सारे पैसे चाहिए. और पैसा जो लगाएगा ओ मुनाफा भी कमाएगा, मुनाफा कमाएगा विज्ञापन से और विज्ञापन मिलेगा सरकार से और बड़े उद्योगों से, तो फिर हुक्म किसका बजाएगा सरकार और पूंजीपतियों का, सरकार किसका है कोंग्रेस का-----------------------------.
तो फिर ये थोथा आदर्शवादिता क्यों और किसलिए -"हम लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ है", जब आपके हाथ में कुछ भी नहीं है आप एक कठपुतली मात्र हो जिसकी डोर पूंजीपतियों के हाथ में है, तो फिर अपनी खीज जेठमलानी पर क्यों उतारने की कोशिश कर रहे हो, आप अच्छे पत्रकार हो, आप अच्छे लिखते हो अच्छे बोलते हो, सब ठीक है परन्तु आपको स्पेस कौन मुहैया कराएगा? और जो स्पेस मुहैया करेगा उसके विरुद्ध आप लिख सकते हो? यदि आपने लिख भी दिया तो कितने सेकेण्ड ओ मिडिया संसथान आपको बर्दास्त कर सकता है?
प्रश्न बहुत सारे है विनोदजी परन्तु आज बात होनी चाहिए, आज की मिडिया जिस अंधी सुरंग में फँस चुकी है उससे कैसे निकाले, जिस दलदल में फँस चुकी है उससे कैसे निकाले, परन्तु हम बात कर रहे है की जेठमलानी ने दीपक चौरसिया को कोंग्रेस का एजेंट क्यों कहा? अरे जब दीपक चौरसिया कोंग्रेस का एजेंट बनकर राम जेठमलानी से असुविधा जनक सवाल जवाब करेगा तो जेठमलानी क्या कहेगा? आपको तो जेठमलानी को साधुबाद देना चाहिए जो आज के माहौल में जब एक स्वर से सारे मिडिया जय सोनिया, जय मनमोहन, जय अम्बानी, जय माल्या --------------का गुणगान गा रहा हो, विपक्ष तक सीबीआई के डर से मूक बना हो, ऐसे माहौल में सच बोलने का सहस किया ''...तुम मीडिया वालों को कांग्रेस ने खरीद रखा है".
विजय झा
निश्चत रूप से यह किसी व्यक्ति या चैनल का अपमान नहीं बल्कि पूरी मीडिया का अपमान है। बात जहां तक प्रतिकार करने की है। अपमान जिस व्यक्ति या संस्थान का हुआ है। शुरुआत तो उसी को करनी चाहिए। उसके बाद ही कारवां बनेगा ना। पहल तो उन्हें ही करनी पड़ेगी। हो सकता है दीपक जी पर कोई दबाव हो वे इसलिए कुछ न कह पा रहे हो, लेकिन किसका दवाब होगा। जहां वे काम कर रहे हैं उसी का ना। तो फिर सवाल ये भी उठता है कि क्यों चैनल कुछ ठोस नहीं कर रहा। मामला गंभीर है। पता किया जाना चाहिए कि माजरा क्या है।
सुरेश चिपलूनकर की टिपण्णी पढ़ कर हम अपनी हंसी रोक नहीं पा रहे हैं....
आदरणीय दिनेश रॉय द्विवेदी जी से सहमत !!!
वैसे सुरेश ने सिर्फ बचाव इसलिए किया की वह बीजेपी से हैं और ..... ख़ैर जाने दीजिये फिर कभी......
सलीम ख़ान
9838659380
आप ने सब कुछ बताया हो सकता है कि राम जी ने ऐसा (''... तुम मीडिया वालों को कांग्रेस ने खरीद रखा है ... तुम अनएज्युकेटेड हो ... अंग्रेजी नहीं जानते ...बदतमीज हो ...गेट आउट... निकल जाओ यहाँ से!'') कहा हो, पर दीपक के उस नीचतापूर्ण प्रश्न को भी तो बताते श्रीमान जी !!
मैं चिपलूनकर जी से सहमत हूँ.
और हाँ मैं बीजेपी से नहीं हूँ. और ना ही तालिबानी हूँ.
स्वतन्त्र भारत का स्वतंत्र नागरिक हूँ जो स्वाधीनता से अपनी राय रखना जानता और निर्भीकता से सत्य के साथ खड़ा होता है.
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