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Sunday, June 13, 2010

अति आत्मविश्वास, अति महत्वाकांक्षा, अति अहंकार!

कुछ मामलों में अति आत्मविश्वास को भी स्वीकार किया जा सकता है। सहन किया जा सकता है। किन्तु अति महत्वाकांक्षा की उपज अति अहंकार को कदापि नहीं। महाज्ञानी, महाशक्तिशाली, अति संपन्न रावण के अंत का कारण यही अति अहंकार बना था। उनके सोने की लंका ध्वस्त हो गई थी तो रावण के अहंकार के कारण। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस तथ्य से अंजान नहीं हो सकते। फिर उन्होंने अहंकार को कैसे ग्रहण कर लिया? अगर मामला 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि' का है तब तो कुछ कहना ही नहीं है। हां! यह दुख अवश्य सालता रहेगा कि अति पिछड़े बिहार को फिर से विकास की पटरी पर लाने में सफल, भ्रष्ट हो चुकी कानून-व्यवस्था की वापसी में सफल, कृषि, शिक्षा, उद्योग, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार में सफल मुख्यमंत्री नीतीशकुमार अहंकारी बन गठबंधन धर्म के साथ-साथ बिहार की संस्कृति को भी भूल गए। लगभग 5 वर्ष पूर्व धूमिल छवि वाले बिहार की बागडोर अगर नीतीश को मिली थी तो भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से ही। यह जदयू-भाजपा गठबंधन की सरकार ही है जिसने बिहार को विश्व नक्शे पर एक बार फिर एक सुशासित प्रदेश के रूप में सम्मानजनक स्थान दिलाने में सफलता पाई। उम्मीद जगी कि अगले चुनाव में यह गठबंधन पुन: सत्तारूढ़ हो विकास की गाड़ी की निरंतरता कायम रखेगा। किन्तु ताजा घटनाक्रम इस विश्वास के मार्ग में अवरोध खड़े कर रहे हैं।
यह आश्चर्यकारक है कि भाजपा के एक बड़े नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार में उपस्थिति को नीतीश पचा नहीं पाए। गुजरात सरकार द्वारा जारी एक विज्ञापन में नरेंद्र मोदी के साथ अपनी फोटो देख नीतीश का आपा खोना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जाएगा। अगर मोदी से उन्हें इतना ही परहेज है, तब फिर उन्होंने मोदी के हाथ को हाथ में लेकर छायाकारों के लिए 'पोज' दिए ही क्यों थे ? क्या लुधियाना में मौजूद वे दूसरे मोदी थे? यही नहीं जब राजग सरकार में नीतीश रेलमंत्री थे, तब भी मोदी राजग का नेतृत्व कर रही भाजपा के एक कद्दावर नेता थे। क्या नीतीश को यह मालूम नहीं था? साफ है कि नीतीश कुमार हीन भावना से ग्रसित हो गए हैं। नरेंद्र मोदी के आभा मंडल को वे पचा नहीं पा रहे हैं। दुखद यह भी है कि नीतीश ने अपना आक्रोश तब व्यक्त किया जब पटना में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक आयोजित थी। भाजपा के साथ गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे नीतीश कुमार यह भी भूल गए कि बिहार में मोदी मेहमान के रूप में आए हैं और नीतीश मेजबान हैं। बिहार की संस्कृति किसी अतिथि के अपमान की इजाजत नहीं देती। भाजपा नेताओं के लिए पूर्व निर्धारित रात्रि भोज के कार्यक्रम को रद्द कर नीतीश ने अशिष्टता का परिचय दिया है। बिहार की संस्कृति को लांछित किया है। अगर वे भाजपा के साथ चुनावपूर्व गठबंधन तोडऩा चाहते हैं, तब स्पष्ट घोषणा कर दें। मोदी को बहाना बनाकर वे ऐसी तुच्छ हरकतें न करें। छद्मधर्मनिरपेक्षता की असलियत अब सभी जान चुके हैं। नीतीश यह कैसे भूल गए कि बिहार के जिस विकास को लेकर वे स्वयं को महिमामंडित कर रहे हैं, वह संभव हो पाया है तो भाजपा के सहयोग के कारण ही! नरेंद्र मोदी अगर हिन्दू हृदय सम्राट के रूप में स्थापित हैं तो यह उनकी अपनी उपलब्धि है। कथित धर्मनिरपेक्ष तत्व उन्हें साम्प्रदायिक घोषित कर सकते हैं। किन्तु, इस हकीकत को नहीं झुठला सकते कि कांग्रेस सहित सभी दलों के पुरजोर विरोध-आक्रमण के बावजूद गुजरात की जनता ने उन्हें अपने सिर-आंखों पर बैठाया है। नीतीश को अगर बिहार के 16 प्र. श. मुस्लिम मतदाताओं की चिंता है तब क्षमा करेंगे, उन्हें राजनीतिक दृष्टि से अपरिपक्व की श्रेणी में रखा जाएगा। अव्वल तो धर्म-संप्रदाय के आधार पर वोट की चिंता ही गलत है। किसी भी धर्मविशेष के नाम पर वोट मांगने वाले धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकते। मुसलमानों को वोट बैंक समझने वालों की पंक्ति में स्वयं को खड़ा कर नीतीश अपनी अब तक की सारी उपलब्धियों पर पानी फेर देंगे। थोड़ी देर के लिए इस नीति को सही भी मान लिया जाए, तब भी गणित नीतीश के पक्ष में नहीं जाता। प्रदेश के 16 प्र.श. मुस्लिम वोट बैंक पर नीतीश अकेले कब्जा नहीं कर सकते। पिछले उपचुनावों के परिणाम इस तथ्य को रेखांकित कर चुके हैं कि लालू यादव का राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस दोनों इस बैंक में सेंधमारी कर चुके हैं। आगे भी यह सफल होंगे। ऐसे में मुस्लिम वोट पर आधिपत्य जमाने की मशक्कत कहीं प्रतिउत्पादक न सिद्ध हो जाए। ऐसी स्थिति में 84 प्र. श. शेष मतदाताओं के सामने विभाजित 16 प्र.श. भला किसे लाभ पहुंचाएंगे? निश्चय ही नीतीश यहां चूक गए। उनके आचरण से भाजपा अगर आक्रमक हुई है तो बिल्कुल ठीक ही है। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी की यह घोषणा बेमानी नहीं है कि भाजपा गठबंधन धर्म तो निभाएगी किन्तु आत्मसम्मान की कीमत पर नहीं।

2 comments:

संजय पाराशर said...

bahut hi achchi lgi aapki post... thanks..
nitish ke karan pure desh ke bihario ko apne mitro ya virodhio se tane sunna padege...buddh aur mahavir ki dharti ko vha ke vartman raja ne dag lga diya hai.

संजय बेंगाणी said...

देश के लिए जातिवाद जितना घातक है उतना ही वोट बैंक है. आप मोदी से नफरत भले ही कर लो मगर इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि मोदी जाती व धर्म के नाम पर वोट नहीं माँगते.

नीतीश का मोदी से घबराना समझ से परे है. सबको पता है मोदी भाजपा के कदावर नेता है और नीतीश को भाजपा का समर्थन है. मोदी ने सही सही जवाब दिया.