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Saturday, June 19, 2010

पहले सुध पीडि़तों की लें!

भोपाल त्रासदी पर जारी 'राजनीति' वस्तुत: वर्तमान भारतीय राजनीति का आईना है। मुद्दों की जगह गैर मुद्दों पर बहस! यह वही खेल है जो हमेशा वास्तविक जरूरत को हाशिये पर रख तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए खेला जाता है। देशहित से इतर स्वहित के लिए, तुच्छ राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति के लिए।
लगभग ढाई दशक के बाद भोपाल गैस कांड पर आए फैसले ने पूरे देश को सकते में डाल दिया था। फिर यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन चेअरमन वॉरेन एंडरसन के अमेरिका भाग जाने-भगा दिए जाने को लेकर नए-नए खुलासे होने लगे। मुख्य मुद्दा, कि नरसंहार के लिए जिम्मेदार लोगों को सिर्फ दो साल की सजा ही कैसे मिली, या फिर यह कि, मुख्य आरोपी एंडरसन को सजा से दूर कैसे रखा गया, गौण हो गया। हजारों-लाखों पीडि़त असहाय इस राजनीति को देख रहे हैं। आरोपियों को और कड़ी सजा मिले, पीडि़तों को उचित मुआवजा मिले, इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा। केंद्र सरकार द्वारा गठित मंत्रियों का समूह शायद इन पर विचार करे। फिलहाल विपक्ष सहित सत्तापक्ष के कुछ नेता और मामले से जुड़े तब के अधिकारीगण यह स्थापित करने में जुटे हैं कि एंडरसन को सुरक्षित अमेरिका जाने देने में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की मिलीभगत थी। अरुण नेहरू जैसे तब के कद्दावर नेता और राजीव के रिश्तेदार भी यही साबित करने में लगे हैं। कांग्रेस नेतृत्व से नजदीकी लोग बलि के बकरे की तलाश में जुट गए हैं। कोई अर्जुन सिंह को निशाने पर ले रहा है तो कोई तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री नरसिंहराव को। मीडिया सहित पूरे देश को इसी बहस में उलझाकर रख दिया गया है। अगर यह साबित भी हो गया कि एंडरसन को भगाने में फलां-फलां का हाथ था, तो इससे पीडि़तों को क्या हासिल होगा? माना कि एंडरसन के पलायन की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए, किंतु आरोपियों को कड़ी सजा और उचित मुआवजे की मांग को हाशिये पर कैसे रखा जा सकता है? भोपाल के तत्कालीन कलेक्टर, एस.पी., सचिव, विमान के पायलट से लेकर अरुण नेहरू, दिग्विजय सिंह, सत्यव्रत चतुर्वेदी, मोतीलाल वोरा, तत्कालीन कैबिनेट सचिव एम.के. रसगोत्रा और अब नरसिंहराव के बड़े बेटे कांग्रेस नेता डॉ. रंगा राव के बयान से मीडिया पटा है। पीडि़तों के लिए राहत और एंडरसन सहित अन्य आरोपियों के लिए कड़ी सजा की मांग करनेवाले गैर सरकारी संगठनों की खबरें क्या समाचार पत्र और क्या टेलीविजन, सभी में उपेक्षित हैं। ऐसा कर मीडिया भी त्रासदी के प्रति असंवेदनशील बन गया प्रतीत होता है। सामाजिक सरोकार से दूर मीडिया का यह आचरण स्वयं में बहस का एक मुद्दा है। लेकिन इस पर नई बहस बाद में। फिलहाल गुजारिश यह है कि राजनीति के लिए राजनीति करनेवालों को छोड़ मीडिया पीडि़तों की सुध ले, आरोपियों को कड़ी सजा देने का अभियान चलाए। चूंकि एंडरसन को भगाने का कृत्य भी देशद्रोह की श्रेणी का अपराध है, उसके जिम्मेदार भी बख्शे नहीं जाएं। किंतु, प्राथमिकता के आधार पर पहले सुध पीडि़तों की ली जाए।

1 comment:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अगर इस समय फैसला नहीं आता तो यह बात भी कहां से उठती. जो लोग चौरासी से अब तक मर खप गये होंगे उनके लिये क्या स्वर्ग में पहुंचायी जायेगी राहत राशि...