मजबूर हूं इस टिप्पणी के लिए कि हमारे देश के वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी या तो स्वयं मूर्ख हैं या इतने शातिर कि उन्होंने पूरे देश को मूर्ख समझ रखा है। यूनियन कार्बाइड के भगौड़े चेअरमैन वारेन एंडरसन की 1984 में अमेरिका रवानगी पर प्रणब की सफाई को देश स्वीकार नहीं करेगा। इसी प्रकार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की नाराजगी का भी कोई खरीदार सामने नहीं आएगा।
प्रणब ने मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का कथित तौर पर बचाव करते हुए देश को यह समझाने की कोशिश की है कि कानून-व्यवस्था के मद्देनजर एंडरसन को भोपाल से बाहर भेजने का फैसला किया गया था। सोनिया गांधी नाराज हैं कि उनके पति, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम इस मामले में क्यों लिया जा रहा है? इन दोनों बातों पर गौर करें। प्रणब का यह स्पष्टीकरण तब आया जब देश के लोग यह मान चुके हैं कि एंडरसन को भोपाल से दिल्ली और दिल्ली से अमेरिका भगाने में मुख्य रूप से राजीव गांधी और सहयोगी भूमिका के लिए अर्जुन सिंह दोषी हैं। स्वयं कांग्रेस का एक खेमा आम लोगों की इस सोच के साथ है। हां, सिर्फ चाटुकारिता को अपनी सफलता का मंत्र माननेवाले कुछ कांग्रेसी नेता चिल्ला-चिल्ला कर यह कहते रहे कि इस मामले में केंद्र या मध्यप्रदेश सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। इनके अनुसार, राजीव गांधी की तो कतई नहीं। अब प्रणब मुखर्जी की स्वीकारोक्ति कि, एंडरसन को सरकार ने ही भोपाल से बाहर अर्थात्ï अमेरिका निकल जाने दिया, को किस रूप में लिया जाए? स्वयं प्रणब ने यह जता दिया कि इसके पूर्व कांग्रेस नेताओं द्वारा की जा रही बयानबाजी गलत थी। सरकार ने ही एंडरसन को अमेरिका भगाया। मैं प्रणब को शातिर यूं ही नहीं कह रहा। उनका ताजा बयान एक सोची-समझी साजिश का नतीजा है, बिल्कुल कांग्रेस संस्कृति के अनुरूप! चूंकि मध्यप्रदेश के लगभग सभी संबंधित अधिकारी इस आशय का बयान दे चुके हैं कि 'ऊपर के आदेश पर एंडरसन को न केवल छोड़ा गया बल्कि सकुशल भारत से निकल जाने दिया गया, इसे झुठलाना संभव नहीं हो रहा था। कांग्रेस नेतृत्व नहीं चाहता कि किसी भी तरह इस मामले में राजीव गांधी की लिप्तता प्रमाणित हो। अत: उसने बड़ी चतुराई से अर्जुन सिंह को सामने कर दिया, इस रूप में कि कांग्रेस उनके बचाव में आ गई है। प्रणब मुखर्जी ने कानून-व्यवस्था का मुद्दा उठाकर यही जताने की कोशिश की है कि एंडरसन को भोपाल से बाहर भेजने का निर्णय अर्जुन सिंह ने लिया था और बिल्कुल सही लिया था। सभी को मालूम है कि इन दिनों अर्जुन सिंह कांग्रेस नेतृत्व की उपेक्षा का शिकार बन हाशिये पर चल रहे हैं। कांग्रेस नेतृत्व से अपनी नाराजगी अर्जुन सिंह कई बार प्रकट कर चुके हैं। इस पाश्र्व में लोग आशा कर रहे हंै कि अर्जुन सिंह जब मुंह खोलेेंगे तब कांग्रेस नेतृत्व को कटघरे में खड़ा कर देंगे। कांग्रेस के लिए तब एक असहज स्थिति पैदा हो जाएगी। नरेंद्र मोदी, सोनिया गांधी को चुनौती दे चुके हैं कि भोपाल त्रासदी में मौतों के सौदागर का नाम बताएं। देश के लोग क्रोधित हैं कि हजारों लोगों की मौत और लाखों के अपंग हो जाने के जिम्मेदार को स्वयं सरकार ने देश से बाहर भगा दिया। कुछ माह बाद बिहार और फिर उत्तर प्रदेश व पं. बंगाल जैसे बड़े राज्यों में चुनाव होने हैं। अगर अर्जुन सिंह ने यह सच उगल दिया कि उन्होंने राजीव गांधी के आदेश पर एंडरसन को छुड़वाया और सरकारी विमान से दिल्ली पहुंचा दिया तब कांग्रेस का राजनीतिक नुकसान निश्चित है।
इसकी काट के लिए ही प्रणब मुखर्जी ने अर्जुन सिंह की कथित कार्रवाई को जायज ठहराया है। समीक्षकों को आशंका है कि संभवत: चुप्पी साधे हुए अर्जुन सिंह के साथ कांग्र्रेस नेतृत्व ने कोई राजनीतिक सौदेबाजी कर ली है, तभी प्रणब ने ऐसा बयान दिया है। अगर यह सच है तब देश के लोग विशेषत: मध्य प्रदेश के लोग राजनीतिक छल के शिकार बनेंगे। मृतात्माएं बेचैन होंगी और लाखों विकलांग बेबसी के आंसू बहाने पर मजबूर होंगे। इतिहास इसे लाशों की सौदेबाजी के रूप में दर्ज करेगा। सत्ता की हवस और शक्ति के दुरुपयोग का यह नया काला अध्याय लोकतंत्र को भी कलंकित करेगा। देश की लगभग सवा सौ करोड़ जनता क्या तब सिर्फ मूकदर्शक बनी रहेगी? यह कैसा लोकतंत्र, कैसा संविधान और कैसा कानून जिसमें आम 'लोक का हित नदारद है? आम लोगों के आंसुओं से तैयार संपन्न लोगों की मुस्कुराहटें क्या लोकतंत्र को मुंह नहीं चिढ़ा रहीं?
3 comments:
बिल्कुल सही बात है आपकी अर्जुन सिंह अपना मुह कब और कैसा खोलते है... यह तो भविश्य के गर्भ मे छिपा है
! इस बात में कोई शक नही की अर्जुन का मूह खुलने के बाद ना जाने किसके-किसके मूह काले होंगे कहा नही जा सकता...
मूर्ख नहीं , निहायत स्वार्थी और चटोरे है , जहां इनका बस चला नहीं कि देश को बेच खा जाए !
बेहद शातिर हैं ये सब. एक बात और यदि ऐसे ही पढ़े लिखे लोग स्वतन्त्रता संग्राम में शामिल होते तो आज भी अंग्रेज ही शासन कर रहे होते. यह अलग बात है कि उनका शासन अधिक अच्छा होता या कहीं और बुरा..
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