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Monday, March 2, 2009

बीस साल बाद ...!


चौंकिए नहीं! मैं विश्वजीत-वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म 'बीस साल बाद' का स्मरण नहीं दिला रहा. मैं तो आज से ठीक बीस साल पूर्व उस दिन, उस क्षण का स्मरण कर रहा हूं, जब मैंने इसी नागपुर शहर के इसी मंच से पाठकों को एक स्वस्थ पाठकीय मंच के माध्यम से पत्रकारिता को नई दिशा-सम्मान देने की विनम्र शुरुआत की थी. तब अवसर था दैनिक 'लोकमत समाचार' के लोकार्पण का. आज बीस साल बाद दैनिक 'राष्ट्रप्रकाश' का लोकार्पण एक इतिहास रचने जा रहा है. हां, हम एक नया इतिहास रचने की ओर कदमताल कर रहे हैं- देश के पहले हिन्दी समाचार-विचार दैनिक 'राष्ट्रप्रकाश' के प्रकाशन के साथ. मुझे इस बात का पूरा एहसास है कि किसी नवप्रस्तुत आत्मा को समझना आसान नहीं होता. महान दार्शनिक नीत्शे के वे शब्द भी मुझे अच्छी तरह याद हैं, जिनके माध्यम से उन्होंने कहा था कि, ''रक्त से लिखो और तुम देखोगे कि तुम्हारे रक्त में तुम्हारी आत्मा बोलती है.'' इसी को विस्तार देते हुए मैंने एक अवसर पर कहा था कि,
''दीये में बाती बाकी है,
इन्हें बुझाओ मत,
कि इनमें तेल के बदले
दिलों का खून जलता है.''
निश्चय ही पाठक इस अनुभूति, इस मर्म को समझेंगे. खबर के साथ-साथ विचार की कल्पना के साथ ही हमने एक नई अखबारी क्रांति की घोषणा कर दी थी. 'राष्ट्रप्रकाश'क्रांति पथ पर बढ़ चला है. वादा है कि 'राष्ट्रप्रकाश' खबरों के माध्यम से पाठकों को सिर्फ जानकारी ही नहीं देगा, बल्कि उसकी सोच-प्रक्रिया को आवश्यक ऊर्जा देगा, ठोस आधार देगा. यह एक ऐसा दैनिक होगा जो जारी परंपरा को तोड़ते हुए तथ्याधारित विश्लेषणात्मक खबरें प्रस्तुत करेगा. स्वस्थ पाठकीय मस्तिष्क को विचार-प्रक्रिया रूपी ईंधन प्रदान करेगा- बगैर किसी पक्षपात के, बगैर किसी पूर्वाग्रह के. 'राष्ट्रप्रकाश' निडर-निष्पक्ष पत्रकारिता का आदर्श मानक बन एक नई क्रांति का प्रेरक बनेगा! अविश्वसनीयता की कालिमा से दूर विश्वसनीयता की नई रोशनी का वाहक होगा 'राष्ट्रप्रकाश'. इस नई लालिमा से आलोकित पत्रकारीय क्षितिज, मीडिया जगत को प्रकाशमय रखेगा, यह हमारा वादा है. 'राष्ट्रप्रकाश' के प्रकाशन का उद्देश्य यही है. लेकिन हम अपने लक्ष्य को तभी प्राप्त कर पाएंगे, जब इसके सुधी पाठक इस पर स्वीकृति की मुहर लगा देंगे. अपने यात्रा-पथ पर संभावित अवरोधकों का एहसास भी हमें है. संकेत मिलने शुरू भी हो चुके हैं. इन्होंने प्रतिस्पर्धा के नाम पर उपहार-संस्कृति को जन्म दिया है. यह संस्कृति पत्रकारिता की मूल-आत्मा को कलुषित कर रही है. ऐसे में पाठक और पत्रकार दोनों ठगे जा रहे हैं. पाठकों को रातों-रात करोड़पति बनाने का ख्वाब दिखाया जा रहा है. पाठक यह तय नहीं कर पाता कि वह अखबार, पढऩे के लिए खरीदे या उपहारों के लिए! पत्रकारिता पर हावी होते बाजार का यह विकृत रूप है. इस दौर में बहुत हद तक पत्रकारों पर निर्भर है कि वे पूंजी निवेशक की जरूरत और पत्रकारिता की अपेक्षा के बीच संतुलन कैसे रखें. मूल-आत्मा को मार कर पत्रकारिता लंबे समय तक जश्न नहीं मना सकती. उपहारों के नाम पर करोड़ों लुटा कर कुछ समय के लिए तो बाजार पर कब्जा किया जा सकता है, लेकिन पाठकों के दिलों पर राज केवल 'कन्टेंट' के जरिये ही संभव है. हमें ऐसे 'बाजार' से तौबा है, जहां पत्र और पत्रकार बिकाऊ माल दिखे. 'राष्ट्रप्रकाश' समाज के प्रति पत्रकारीय दायित्व निभाने को कटिबद्ध है. परिस्थितियां चाहे अनुकूल हों या प्रतिकूल, स्वस्थ वैचारिक मंथन तथा तथ्य परक समाचारों के माध्यम से 'राष्ट्रप्रकाश' देश को दिशा-निर्देशित करेगा. उद्देश्य यह भी होगा कि उत्साही एवं सक्षम युवा पीढ़ी का समुचित मार्गदर्शन किया जाए, ताकि वह सकारात्मक सोच के साथ सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर सके.
राजनीतिक अस्थिरता के चालू दौर में, ढेरों खामियों के बावजूद, समाज की आशावान निगाहें पत्र-पत्रकारों पर ही टिकी हैं. समाज के इस विश्वास के साथ कोई घात नहीं. पत्रकारीय पेशे की पवित्रता को कायम रखते हुए 'राष्ट्रप्रकाश' मीडिया जगत की विश्वसनीयता की मजबूती की दिशा में बेखौफ अपना अभियान जारी रखेगा- इस विश्वास के साथ कि पाठक 'राष्ट्रप्रकाश' को स्वीकार कर हमारे पवित्र अभियान को संबल प्रदान करते रहेंगे.

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