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Monday, March 9, 2009

सिर्फ 'मराठा माणूस' नहीं हैं शरद पवार !


जब निर्धारित अंक से कम प्राप्तांक पर आरक्षण के नाम पर मेडिकल कालेजों में दाखिला देने की शुरुआत हुई थी, तब यह मांग भी उठी थी कि ऐसे विद्यार्थियों के लिए मरीज भी आरक्षित कर दिए जाएं. आरक्षित कोटे से डाक्टर बने लोगों के लिए मरीज भी आरक्षित वर्ग के ही हों. यह कोई मजाक नहीं, गंभीरता के साथ देश में ऐसी मांग उठी थी. मांग हास्यास्पद तो थी, किन्तु विचारणीय भी. मामला पात्रता अथवा योग्यता से जुड़ा था. इसकी संवेदनशीलता के कारण बात तब आई-गई हो गई. आज जब शिवसेना की ओर से यह कहा जा रहा है कि 'मराठा माणूस' होने के कारण शरद पवार प्रधानमंत्री बनें, तब आरक्षण के आरंभिक दिनों की बातें अनायास जेहन में कौंध गईं. दु:ख हुआ सेना की संकीर्ण सोच पर. शरद पवार प्रधानमंत्री बनें, यह हम सभी चाहेंगे. पवार हर दृष्टि से इस पद के लिए योग्य पात्र हैं. प्रधानमंत्री पद के लिए आवश्यक सभी गुण उनमें हैं. भारत और भारतीयता की समझ रखने वाले पवार न केवल एक बुद्धिमान राजनीतिज्ञ हैं, बल्कि एक कुशल प्रशासक के रूप में भी स्थापित हो चुके हैं. शायद वर्तमान पीढ़ी के उपलब्ध नेताओं में प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वथा योग्य उम्मीदवार पवार ही हैं. प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी के औचित्य को चुनौती नहीं दी जा सकती. अवसर मिलता है तब वे प्रधानमंत्री अवश्य बनें. भला लोकतंत्र में किसी पद विशेष के लिए किसी व्यक्ति विशेष की उम्मीदवारी को चुनौती दी भी कैसे जा सकती है! किन्तु शिवसेना ने जिस 'मराठी माणूस' की एकाकी योग्यता पर प्रधानमंत्री के लिए पवार के नाम को उछाला है, वह आपत्तिजनक ही नहीं, अपमानजनक भी है. क्षेत्रीयता आधारित यह सोच संकीर्ण है, अलगाववाद का प्रतीक है. स्वयं पवार के लिए यह मांग असहजता पैदा करने वाली है. पवार न केवल मराठों के नेता हैं और न ही केवल महाराष्ट्र के. वे तो सर्व स्वीकार्य राष्ट्रीय नेता हैं. शिवसेना की 'खास संस्कृति' के कारण राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाले बाल ठाकरे या उनके भतीजे राज ठाकरे से बिल्कुल पृथक शरद पवार अगर राष्ट्रीय स्तर पर परिचित और लोकप्रिय हैं तो अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ, राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में व्यापक सोच और प्रशासनिक कुशलता के कारण. देश के रक्षा मंत्री के रूप में वे अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान भी बना चुके हैं. ऐसे राष्ट्रीय व्यक्तित्व को शिवसेना 'मराठी माणूस' की सीमित परिधि में न समेटे. उनके कद को बौना न बनाए. शिवसेना की यह सोच उस संक्रामक जातीयता व क्षेत्रीयता पर आधारित है, जिसकी परिणति बिखराव व टूट के रूप में होती है. राष्ट्रीय नेतृत्व की अपेक्षा करने वाला ऐसी संकीर्ण मानसिकता का धारक कदापि नहीं हो सकता. पवार भी नहीं. शिवसेना अगर उनकी शुभचिंतक है तो अपनी सोच, अपना दृष्टिकोण व्यापक करे. पूरे देश से अलग-थलग कर किसी भी 'मराठा माणूस' को दिल्ली पहुंचाने की कल्पना ही बेतुकी है. हम समझते हैं कि शिवसेना भी इस तथ्य को अच्छी तरह समझती है. हां, प्रादेशिकता उसकी राजनीतिक 'मजबूरी' हो सकती है. राष्ट्रीयता कतई नहीं. प्रधानमंत्री तो पूरे राष्ट्र का होता है, मराठी, पंजाबी या बंगाली का नहीं.
7 मार्च 2009

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