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Monday, March 23, 2009

लालू की चुनौती, कांग्रेस की 'मूर्खता'...!


अब सोनिया गांधी चाहे जितनी आंखें तरेर लें, लालू यादव ने उनकी और उनकी पार्टी की औकात बता दी है. बिना शब्दों को चबाए लालू ने यह जता दिया है कि उत्तरप्रदेश के बाद कांग्रेस बिहार को भी भूल जाए. यह तो होना ही था. बिहार और लालू को जानने वाले इस सचाई से पूर्व-परिचित हैं कि सन् 2004 में लालू, सोनिया के निकट आए तो एक खास एजेंडा के साथ. अन्यथा घोर ब्राह्मïण विरोधी यह समाजवादी कभी भी कांग्रेस के साथ जा ही नहीं सकता था. लालू की राजनीतिक बुनियाद ही कांग्रेस तथा नेहरू-गांधी परिवार-विरोध पर पड़ी है. जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में तब इंदिरा गांधी के कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले लालू यादव यह आज तक नहीं भूले हैं कि उनके खिलाफ कुख्यात 'चारा कांड' की शुरुआत कांग्रेस की ओर से की गई थी. उन्हें न केवल एक अतिभ्रष्ट राजनीतिक के रूप में कांग्रेस ने देश के सामने चित्रित किया, बल्कि मुकदमों में फंसा उन्हें जेल में बंद रखने की कोशिशें होती रहीं. यहां तक कि जब उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा, तब कांग्रेस शासित केंद्र सरकार के इशारे पर सेना की सहायता से गिरफ्तार करने की साजिश रची गई थी. केंद्रीय जांच ब्यूरो के तत्कालीन संयुक्त निदेशक स्वयं अलसुबह सेना की मदद लेने के लिए सैन्य अधिकारियों के पास पहुंचे थे. उद्देश्य था कि लालू यादव को एक 'कुख्यात भ्रष्ट बाहुबली' के रूप में देश के सामने पेश किया जाए. सेना द्वारा इनकार कर दिए जाने के कारण केंद्र की मंशा पूरी नहीं हो सकी. लेकिन तब केंद्रीय जांच ब्यूरो ने एक के बाद एक मामले दर्ज करने का जो सिलसिला शुरू किया था, वह बेमिसाल है. 'ऊपरी आदेश' के तहत सीबीआई ने षडय़ंत्र रचा था कि लालू यादव गिरफ्तार होने के बाद जैसे ही जमानत पर रिहा हों, तत्काल दूसरे मामले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए. उन्हें कानूनी मामलों में इतना उलझा दिया जाए कि राजनीतिक रूप से वे निष्क्रिय हो जाएं. लालू यादव ये सब घटनाएं भूल कैसे सकते हैं?
2004 के जिस एजेंडे की मैंने चर्चा की है, वह वस्तुत: लालू की कूटनीति थी. कांग्रेस नेतृत्व की सरकार को समर्थन की एवज में उन्हें केंद्र की मदद चाहिए थी. लालू के खिलाफ मामलों पर नजर रखने वाले पुष्टि करेंगे कि समर्थन का भरपूर लाभ लालू को मिला. जांच की गति धीमी हुई और शनै:- शनै: उन्हें राहत मिलने लगी. सीबीआई की ही ओर से लालू के खिलाफ मामले कमजोर किए जाने लगे. अनेक मामलों में वे और उनकी पत्नी राबड़ी देवी बरी भी हुईं.
आज अगर सोनिया व कांग्रेस को लालू उनकी औकात बताने पर उतारू हैं तो आश्चर्य क्या? लालू इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि बिहार व झारखंड में अपनी राजनीतिक शक्ति को बरकरार रख तथा उसमें इजाफा कर ही वे भविष्य में बनने वाली सरकार पर दबाव बना सकते हैं. लालू के खिलाफ मामले अभी खत्म नहीं हुए हैं. इतिहास साक्षी है कि सत्ता से हटने पर केंद्र की ताकत क्षत्रप के खिलाफ हो जाती है.
बिहार में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यू) सत्ता में हैं. तुलनात्मक दृष्टि से वहां की जनता सरकार को पसंद कर रही है. मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार वहां काफी लोकप्रिय हैं. कांग्रेस का जनाधार वहां लुप्तप्राय है. ऐसे में कांग्रेस का साथ देकर लालू यादव खुद के लिए 'मौत' को आमंत्रित क्यों करें? उन्होंने बिल्कुल सही निर्णय लेते हुए कांग्रेस से पल्ला झाड़ रामविलास पासवान से गठजोड़ कर लिया. कांग्रेस ने जवाबी प्रहार के रूप में वहां की 40 में से 37 सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा कर अपने लिए स्वयं ही हास्यास्पद स्थिति का निर्माण कर लिया है. राजनीति का नया-नया विद्यार्थी भी बेखौफ ऐसी भविष्यवाणी कर सकता है कि इनमें से 30 से अधिक सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हो जाएंगी.
यह समझ से परे है कि कांग्रेस क्यों खुद की फजीहत कराने पर आमादा है! दीवार की लिखावट को पढ़ सकने में अगर कांग्रेस नेतृत्व अक्षम है, तब कम-अज-कम हवा में तैर रहे कांग्रेस-विरोधी शोर को तो सुन ले! लालू यादव या रामविलास पासवान कितने सफल होंगे, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही ज्ञात होगा, किन्तु बिहार में कांग्रेस की 'मौत' को तो लोग अभी ही देख रहे हैं. बेहतर हो, कांग्रेस नेतृत्व अपनी मुठ्ठी को बंद ही रखे.

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