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Monday, March 9, 2009

सत्कार एकपक्षीय नहीं, निष्पक्षीय हों!


एक समय था जब 'कथनी और करनी में फर्क' की ओर ध्यान आकृष्ट कर लोगों को आईना दिखाया जाता था. लेकिन, अब तो कथनी-कथनी में फर्क के उद्धरण धड़ल्ले से सामने आ रहे हैं. अब हम-आप क्या करें? नागपुर पश्चिम से तेजतर्रार युवा विधायक देवेंद्र फडणवीस को निराशा तो हाथ लगी होगी, तथापि मैं बता दूं कि वर्तमान राजनीति का यथार्थ यही है. पिछले दिन कांग्रेस, राकांपा और भाजपा के 3 नेताओं के एक साथ एक ही मंच पर आयोजित सत्कार समारोह में देवेंद्र ने बड़े उत्साह के साथ उसी मंच से घोषणा कर डाली कि 'समारोह वर्तमान राजनीति के बदलते स्वरूप का प्रतीक है.' क्या सचमुच? लोग विश्वास करने को तैयार नहीं हैं. शायद देवेंद्र समारोह की भव्यता के कारण अति उत्साह में आ गए थे. उसी मंच से उनके नेता नितिन गड़करी ने मंद-मंद मुस्कान के साथ समारोह आयोजकों के पाश्र्व की चर्चा करते हुए उन्हें होने वाले अर्थलाभ को सार्वजनिक कर बहुत-कुछ कह दिया था. फिर इसके दूसरे ही दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व भाजपा के मुखपत्र समझे जाने वाले 'तरुण भारत' ने सत्कार समारोह को 'बिल्डर लॉबी का गोलमाल' निरूपित कर डाला. उन्होंने एक खबर प्रकाशित कर लोगों को यह बताया कि जिस मिहान प्रकल्प को मूर्त रूप देने के लिए अलग-अलग पार्टियों के 3 नेताओं के सत्कार का आयोजन किया गया, वस्तुत: उसके पीछे बिल्डर लॉबी का अपना स्वार्थ था. 'तरुण भारत' ने बताया है कि अगले 2 वर्ष तक तो जमीन की कीमतों में वृद्धि की संभावना नहीं है, किन्तु बिल्डर लॉबी ऐसे आयोजन कर जमीन की कीमतों में तत्काल वृद्धि की मंशा रखती है. अब सवाल यह कि अगर यह सच है तब कांग्रेस-राकांपा-भाजपा के नेता उस मंच पर क्यों पहुंचे? क्या ये नेता झांसे में आ गए? या फिर इनकी कोई अपनी मंशा थी? बकौल 'तरुण भारत', आयोजन एक स्थानीय सांसद व केंद्र में मंत्री को राजनीतिक हाशिये पर भेजने का उपक्रम था. अगर यह सच है तो फिर देवेंद्र फडणवीस को अपने शब्द वापस लेने होंगे. क्योंकि तब भारतीय राजनीति का कोई सकारात्मक बदलता स्वरूप रेखांकित नहीं होता, बल्कि यह पुनस्र्थापित हुआ कि भारतीय राजनीति में कहीं कुछ नहीं बदला है, सब कुछ वही है जिसकी नींव पं. जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के पश्चात 60 के दशक के मध्य में डाल दी गई थी- स्वार्थ आधारित षडय़ंत्र, विश्वासघात और मूल्यों का श्राद्ध. नागपुर का कायाकल्प हो, उसे विश्व नक्शे पर सम्मानजनक स्थान मिले, विदर्भवासियों की इस इच्छा के साथ मैं भी हूं. इस हेतु प्रयत्न करने वालों का सत्कार नागपुर के वसंतराव देशपांडे सभागृह में ही नहीं, बल्कि दिल्ली के बोट क्लब पर सार्वजनिक रूप से हो, मैं तो यही चाहूंगा. ऐसे सत्कार समारोह अन्य लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनते हैं. इसकी निरंतरता कायम रहनी चाहिए. किन्तु लोगों की नजरों में ऐसे समारोह तभी विश्वसनीय व पवित्र स्थान प्राप्त करेंगे जब वह एकपक्षीय नहीं, निष्पक्षीय दिखें.
'तरुण भारत' ऐसा मानने को तैयार क्यों नहीं? हमें जवाब किसी और से नहीं, एक सत्कार मूर्ति नितिन गड़करी से चाहिए. क्योंकि यह गड़करी का ही कहना है कि कांग्रेस-राकांपा के नेता निजी स्वार्थ के लिए ही 'मिहान' का श्रेय लेने की होड़ में शामिल हुए हैं. और यह कि 'मिहान' प्रकल्प को गति युति सरकार अर्थात् भाजपा-शिवसेना गठबंधन के काल में मिली. ऐसे में विदर्भ, विशेषकर नागपुर के लोगों की यह जिज्ञासा आधारहीन तो नहीं ही कि कांग्रेस व राकांपा नेताओं के साथ नितिन गड़करी मंच पर उपस्थित कैसे थे! पूरा विदर्भ इस सवाल का उत्तर चाहता है.
6 मार्च 2009

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