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Saturday, March 28, 2009

नग्न न करें चौथे स्तंभ को!


अगर यह चौथे खंभे के बदन से शालीनता के वस्त्र को उतार उसे अर्थात् मीडिया को नग्न करने की कोशिश है तो सफलता की कोई सोचे भी नहीं. प्रतिरोध होगा और इसे भारतीय समाज स्वीकार नहीं करेगा. दिल्ली में चैनलों को, उनके संचालकों को, उनमें काम करने वाले प्रशासकीय अधिकारियों-कर्मचारियों और पत्रकारों को बहुत नजदीक से देख चुका हूं. कुछ को नंगा भी. बावजूद इसके 'एक उम्मीद' जैसे सराहनीय घोष वाक्य के साथ नए 'पी-7 न्यूज' चैनल की शुरुआत से दु:खी हूं. क्षोभ से दिल भर उठा चैनल के 'लांचिंग' कार्यक्रम की जानकारी प्राप्त कर. चैनल के एंकर-पत्रकारों से 'कैटवॉक' की सोच ही पतित है, घृणित है पत्रकारों की भागीदारी .
एक ओर जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भ्रम और अश्लीलता फैलाने के लग रहे आरोपों पर बंदिश लगाए जाने के उपाय स्वयं चैनलों के संचालक-पत्रकार ढूंढ़ रहे हों, 'पी-7 न्यूज' ने उन्हें ठेंगा क्यों दिखाया? क्या इस नवउदित चैनल ने 'नेकेड टीवी' का अनुसरण करने की सोच रखी है? संचालक किसी भ्रम में न रहें. इस देश का कानून और इसकी संस्कृति इजाजत नहीं देगी. फिर पत्रकारों को 'रैम्प' पर मटकने के लिए मजबूर क्यों किया गया? चूंकि इस अवसर पर फिल्म अभिनेत्री डिम्पल कपाडिय़ा और मॉडल नेत्रा रघुनाथन मौजूद थीं, संचालकों की सोच अनावृत्त है. साफ है कि वह सारा तामझाम प्रचार- सस्ते प्रचार के लिए किया गया था. ऐसा नहीं होना चाहिए था.
गिरावट के बावजूद मीडिया से लोग अनुकरणीय आदर्श की अपेक्षा करते हैं. साफ-सुथरी विश्वसनीय खबरों की चाहत रहती है लोगों को. मनोरंजन के कार्यक्रमों से उन्हें परहेज नहीं, किन्तु उच्च स्तर और सर्वमान्यता की शर्त वह अवश्य रखते हैं. क्यों किया 'पी-7 न्यूज' ने ऐसा? 'एक उम्मीद' को प्रचारित कर मीडिया जगत में उन्होंने तो क्रांति लाने का संदेश दिया था. आशा जगी थी कि यह नया चैनल उम्मीद की नई रोशनी लेकर आएगा. चैनलों पर से अविश्वसनीयता और अश्लीलता की गंदली चादर को जला राख कर देगा. एक नया आदर्श स्थापित कर अन्य चैनलों के लिए अनुकरणीय मानक बनेगा. लेकिन अपने 'लांचिंग' कार्यक्रम द्वारा संचालकों ने 'उम्मीद' को 'नाउम्मीद' में बदल डाला.
मैं यहां संदेह का लाभ देते हुए उन्हें एक और अवसर देने को तैयार हूं. हो सकता है अति उत्साह में 'कैटवॉक' संबंधी गलत सलाह संचालकों ने स्वीकार कर ली हो. या फिर सलाहकारों ने 'न्यूज' के ऊपर 'ग्लैमर' को वरीयता दे दी हो. अभिनेत्री और मॉडल की उपस्थिति इस बात की चुगली कर रही है. इस पूरे प्रसंग में सर्वाधिक पीड़ादायक पत्रकारों का 'कैटवॉक' के लिए तैयार होना है. क्यों तैयार हुए वे 'रैम्प' पर आने को? अगर यह नौकरी करने की मजबूरी थी, तो मैं बता दूं कि भविष्य के लिए आप स्वयं के लिए मजबूरी का कोष तैयार कर रहे हैं. एक ऐसा कोष जिसमें सिर्फ समानार्थी शब्द ही मिलेंगे, पर्यायवादी नहीं! इतनी निरीहता क्यों? गुण है, क्षमता है, कुछ कर गुजरने का माद्दा है, पेशे के प्रति ईमानदारी व निष्ठा है, सामाजिक सरोकारों का ज्ञान है, राष्ट्र के प्रति समर्पण की तैयारी है, तब कोई आपको मजबूर नहीं कर सकता! बल्कि संचालक मजबूर हो जाएंगे आपकी पवित्र सोच के साथ आगे बढऩे के लिए. आरंभिक तकलीफों-परेशानियों को छोड़ दें तो सच मानिए, अंतिम विजय आपकी ही होगी. समर्पण, कर्तव्य-दायित्व निर्वाह के प्रति हो, न कि किसी कुत्सित सोच के प्रति. पत्रकार तो समाज, देश का मार्गदर्शक है. निडरता-निष्पक्षता का झंडाबरदार है. समाज में विशिष्ट स्थान है उसका. कवच के रूप में पाठकों-दर्शकों की विशाल फौज उपलब्ध है. फिर कैसा भय और कैसी निराशा! झुकना और रेंगना तो कल्पनातीत है. अपनी ताकत, अपने वजूद को हाशिए पर न रखें पत्रकार! इस बिरादरी को भ्रष्ट-पतित करने की कोशिशें हर काल में होती रही हैं. आज भी ऐसा ही हो रहा है- लेकिन मजबूरी में उत्पन्न कुछ अपवाद को छोड़ दें तो बिरादरी इनका सामना मजबूती से करती आयी है- कर रही है. 'पी-7 न्यूज' के संचालकगण इस सचाई को हृदयस्थ कर लें. 'पी-7' को 'पर्ल (मोती)-7' ही रहने दें, 'पेज-3' को विस्तार देते हुए 'पेज-7' न बनाएं. तब आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी और जिस 'एक उम्मीद' को आपने जागृत किया है, वह मीडिया के स्वच्छ-सुंदर स्वरूप का वाहक बनेगा. शुभकामनाएं.
28 मार्च 2009

3 comments:

रवि रतलामी said...

-- हे हे हे.. पी7 यही तो चाहते थे - फ्री फोकट में विज्ञापन - उनके इस कदम की आलोचना मीमांसा के जरिए. हर तरफ पी7 का जिक्र है. चलिए, हम भी देखते हैं कि पी7 में क्या है... :)

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

sir jee aaapne likha hai- "main ek or avsar dene ko taiyar hu." aap kya shri krishan hain jo shishupal ko mouka de rahen hain.narayan narayan

kshitij said...

सर..मैं आपसे जरा भी इत्तफाक नहीं रखता कि पी सेवेन चैनल ने जो किया वो गलत है...हां इस बात से सहमत जरुर हूं कि उसमें काम करने वाले पत्रकारों को इसका विरोध करना चाहिए था....अगर उन्होंने नहीं किया तो आप और हम जैसे लोग अपना खुन जलाकर उनका क्या कर लेंगे....वैसे भी अब मीडिया ,पत्रकारिता सब नाम की है....घर में चुल्हा जलाने के लिए लोग हर मोड़ पर समझौता कर रहे हैं.....लाला की चाकरी कर रहे हैं.....दो जून की रोटी मिलती रहे...परिवार चलता रहे....इस मानसिकता ने पत्रकारों को बाबू बना दिया है.....