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Saturday, March 14, 2009

चोरों की बारात का 'दूल्हा'!


जी हां, हर गली, हर नुक्कड़, हर चौराहे पर ही नहीं, बड़े सितारा होटलों के रेस्तरां में भी लोगबाग एक-दूसरे से पूछ रहे हैं कि चोरों की बारात में 'दूल्हा' कौन होगा? संदर्भ को विस्तार न देते हुए बता दूं कि लोगों की जिज्ञासा का आशय प्रधानमंत्री पद को लेकर विभिन्न दलों, गठबंधनों में जारी घमासान से है. आम लोगों की नजरों में राजनीतिकों की हैसियत को देख-समझ मन क्षुब्ध हो उठता है- हमारा लोकतंत्र ऐसी दशा में क्यों पहुंच गया? लोग खुलेआम राज और राजनीति करने वालों को चोर, भ्रष्ट और बेईमान क्यों निरूपित करने लगे हैं? क्या हम इसे राष्ट्रीय सोच मान लें? राजनीतिकों और राजदलों की ओर से इस सोच के गंभीर प्रतिवाद की अनुपस्थिति में तो इसे सच ही मानना पड़ेगा. अब यह देश की मजबूरी है कि अयोग्य भीड़ में से ही 'बेहतर दूल्हे' की तलाश करें. तलाश के लिए इन चेहरों पर गौर करें- मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, लालूप्रसाद यादव, लालकृष्ण आडवाणी, चंद्रबाबू नायडू, नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, एच.डी. देवगौड़ा, जे. जयललिता और कुमारी मायावती. सभी के सभी 'दूल्हा' का सेहरा पहनने को तैयार! अब आप 100 करोड़ से अधिक की आबादी को कैसे समझाएंगे? उनके भविष्य को संवारने की जिम्मेदारी को आतुर ये चेहरे क्या बेदाग हैं? दलीय, क्षेत्रीय या जातीय प्रतिबद्धता से इतर ईमानदार जवाब 'ना' में आएगा. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की ऐसी दु:स्थिति? संप्रग और राजग से पृथक उभरे तीसरे मोर्चे में शामिल होने वाली बसपा की शर्त है कि मायावती को प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया जाए. भ्रष्टाचार के अनेक मामलों में फंसीं मायावती खुद को प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वथा योग्य मानती हैं. आम जनता इन्हें अपना नेता माने तो कैसे माने? राजग की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार लालकृष्ण आडवाणी भले ही जैन हवाला कांड से बरी हो गए हों, लेकिन सफेद कुर्ते पर दाग तो लग ही चुका है. प्रधानमंत्री की कुर्सी हड़पने को व्यग्र पवार राजनीतिकों और अपराधियों के बीच साठगांठ संबंधी वोरा आयोग की रिपोर्ट में स्थान मिलने के कारण हमेशा संदिग्ध बने रहे हैं. मुलायम सिंह यादव, लालूप्रसाद यादव तथा जयललिता भ्रष्टाचार के मामलों के मुजरिम हैं. नरेंद्र मोदी खतरनाक सांप्रदायिकता के मुजरिम हैं तो चंद्रबाबू नायडू घोर अकर्मण्यता के- भ्रष्टाचार के भी. देवगौड़ा की 'असलियत' पिछले दिनों कर्नाटक विधानसभा चुनाव के समय सतह पर आ चुकी है- घोर अवसरवादी व अविश्वसनीय. नीतीश अवश्य भ्रष्टाचार से दूर हैं, किंतु व्यापक राष्ट्रीय समर्थन से कोसों दूर. रही बात वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के 'भविष्य' राहुल गांधी की, तो मनमोहन को जनता ने परख लिया है. अर्थविशेषज्ञ मनमोहन की आर्थिक मोर्चे पर विफलता सामने है. इनके शासनकाल में भ्रष्टाचार के मामलों में वृद्धि की अपनी कहानी है. राहुल गांधी की अपरिपक्वता विशाल भारत के नेतृत्व में बाधक है. लेकिन देश का दुर्भाग्य कि उसे नेतृत्व इन्हीं चेहरों में से मिलेगा. इस 'दुर्भाग्य' के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है? ऐसी दयनीय स्थिति क्यों? क्या राजनीति के प्रति अच्छे, सुपात्र लोगों की बेरुखी मुख्य कारण नहीं? देश की इस दुरावस्था का कड़वा सच यही है. सुविख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर व्यथित हृदय से स्वीकार करते हैं कि 'देश की वर्तमान दुर्दशा के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो ये पॉलिटिशियन ही....! मैंने इन्हें अत्यंत नजदीक से नंगा देखा है.' क्या कोई नैयर के इस आकलन को चुनौती दे सकता है? स्वयं को नंगेपन की अवस्था में पहुंचा देने वाले राजनीतिकों में अगर थोड़ी भी नैतिकता और राष्ट्रप्रेम शेष है, तो कम से कम नई युवा पीढ़ी को ऐसी दुरावस्था में पहुंचने से रोकने के उपाय करें, ताकि आने वाले दिनों में किसी अन्य नैयर को दु:खी न होना पड़े. और ऐसा कर वे संभवत: प्रायश्चित भी कर पाएंगे.

1 comment:

अबरार अहमद said...

सर बात आपने बिल्कुल खरी की है। आज देश में कोई भी ऐसा नेता नहीं जो पुरी तरह से प्रधानमंत्री पद के लिए लायक हो। अब जनता को इन्ही में से किसी एक को दूल्हा बनाना होगा। लेकिन जनता को इस बात का ख्रयाल रखना चाहिए कि वह जिसे भी चुनें वह छोटे से छोटा चोर हो।
धन्यवाद