नहीं, कतई नहीं। इस आकलन को कि 50 वर्ष में महाराष्ट्र बुद्धिशून्य हुआ, स्वीकार नहीं किया जा सकता। हर दृष्टि, हर कोण, हर विचार और हर विश्लेषण इस आकलन को अमान्य करार देगा। फिर निखिल वागले ने ऐसा क्यों कह दिया? यह ठीक है कि शब्दों से खेलना हमारे पेशे का एक अंग है किन्तु सत्य की चक्की में तथ्य का चूर्ण तैयार करने का हक किसी को नहीं। पिछले दिनों मराठी न्यूज चैनल आईबीएन-लोकमत पर शिवसैनिकों के हमले से चर्चा में आए इस चैनल के संपादक निखिल वागले का नाम सुना था, कभी मिला नहीं था। हाल में वे नागपुर आए तो मुलाकात हुई। बताया गया था कि वागले तेज-तर्रार, ओजस्वी वक्ता-पत्रकार हैं। उन्हें सुनने का मौका मिला। अनेक सवाल मस्तिष्क में कौंध गए। कोई यह कैसे स्वीकार कर ले कि 50 वर्षों से महाराष्ट्र बुद्धिशून्य हो गया है? समाज में विचार शून्यता, संवेदनहीनता और लाचारी की स्थिति पैदा हो गई है? राज्य में कोई विचारक नहीं है? सामाजिक शौर्य खत्म हो गया है? सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक स्तर गिरा है? उद्योग, कृषि, शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति नहीं हुई है? समाज के हर क्षेत्र का अध:पतन हुआ है? व्यवस्था विरोधी नकारात्मक स्वर पर तालियां मिल सकती हैं। किन्तु कोई तथ्यों के बरगद पर आरी कैसे चला सकता है?
ऐसा कर निखिल वागले ने स्वयं को 'सत्यभक्षी' पत्रकारों की श्रेणी में खड़ा कर दिया है। वे यह कैसे भूल गए कि प्रतिभा पाटिल के रूप में महाराष्ट्र का कोई प्रतिनिधि देश का राष्ट्रपति बना। देश की पहली महिला राष्ट्रपति होने का गौरव प्राप्त हुआ। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में बाबा आमटे का नाम पूरे विश्व मे श्रद्धा के साथ लिया गया। पानीवाली बाई के नाम से सुख्यात मृणाल गोरे ने सामाजिक क्रांति की अनुकरणीय मशाल जलाई थी। अन्ना हजारे व मोहन धारिया जैसे अनुकरणीय सामाजिक व्यक्तित्व अभी जीवित हैं। विज्ञान के क्षेत्र में महाराष्ट्र के ही डॉक्टर अनिल काकोडकर परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष बने। भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों में इनका योगदान विशिष्ट रहा। साहित्य, कला और खेल के क्षेत्र में पु.ल. देशपांडे, लता मंगेशकर, विजय तेंदुलकर, सुरेश भट, राम शेवालकर, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर आदि-आदि के योगदान को कैसे भुलाया जा सकता है। महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश के आदर्श बने ये हस्ताक्षर। महाराष्ट्र में अनुकरणीय व्यक्तित्व पर सवालिया निशान जडऩे वाले निखिल वागले यहां मात खा गए। स्व. यशवंत राव चव्हाण के कुछ सपने बिखर सकते हैं। उनका अपमान कदापि नहीं हो रहा है। स्वयं यशवंत राव ने देश के रक्षा मंत्री के रूप में 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय शक्ति का झंडा गाड़ा था। इसके दो-ढाई वर्ष पूर्व चीन के हाथों बुरी तरह पिटने वाला भारत तब शान से सिर उठाकर विश्व समुदाय के बीच चलने के काबिल बना था। याद दिला दूं, 1965 में जब प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से पूछा गया था कि उनके बाद देश का प्रधानमंत्री कौन बन सकता है। तब उन्होंने जवाब दिया था कि अगर मैं तीन वर्ष तक प्रधानमंत्री बना रहा तब यशवंत राव चव्हाण प्रधानमंत्री बनेंगे और अगर एक वर्ष बाद उत्तराधिकारी का सवाल उठा तब इंदिरा गांधी। उस जवाब का निहितार्थ तब लोग समझ गए थे। लाल बहादुर शास्त्री की आकस्मिक मौत ने तब महाराष्ट्र को प्रधानमंत्री पद से वंचित कर दिया था। महाराष्ट्र का अध:पतन न कभी हुआ था, न कभी हुआ है। हर क्षेत्र में गिरावट तो वस्तुत: राष्ट्रीय चिंता का विषय है- किसी प्रदेश का नहीं।
5 comments:
श्रीमान कैसी बातें कर रहे हैं आप. आप महाराष्ट्र के बारे में क्या जानते हैं अगर आपने शिवसैनिकों के आईबीएन दफ़्तर पर हमले के बाद वागले का नाम सुना. वागले आज से नहीं पिछले दो दशक से शिवसेना की गुंडागर्दी के खिलाफ़ बोलने वाले अकेले पत्रकारों में हैं, आप पता नहीं कहाँ थे, और हैं. महाराष्ट्र के बारे में एक ही पत्रकार सत्य बोल रहा है और आप उसे सत्यभक्षी कह रहे हैं, धन्य हैं आप. महाराष्ट्र की प्रतिभा का परिचय आप प्रतिभा पाटिल के ज़रिए दे रहे हैं, इसे अधिक बुद्धिहीनता क्या होगी.
AAPNE BILKUL THIK KAHA HAIN AAJ MAHRASATRA EK VIKAASSHIL RAJYAOME AATA HAIN
अनामदासजी, बाल ठाकरे अकेले महाराष्ट्र नहीं हैं। उनकी गुंडागर्दी का अर्थ यह नहीं की पूरा महाराष्ट्र गुंडा है। निखिल वागले उनके खिलाफ लड़ रहे यह ठीक है। लेकिन आप जो विनोदजी से यह पूछ रहे हैं कि वे कहां थे, तो आप इसी ब्लॉग में ठाकरे पर उनके आलेख पढ़ लें। ठाकरे के खिलाफ वागले की टिप्पणियां बौनी नज़र आएंगी। 1991 में विनोदजी जब लोकमत समाचार के संपादक थे, उन्होंने अपने स्तंभ 'मंथन' में ठाकरे की गुंडागर्दी के खिलाफ 'नामर्द' शीर्षक के अंतर्गत आलेख के द्वारा बाल ठाकरे को चुनौती दी थी। तब शिवसैनिकों ने उनके निवास पर हमला बोल दिया था। तब निखिल वागले कहां थे आपको पता हो तो बता दें। विनोदजी ने 'महाराष्ट्र की तेजस्विता' में इस बात पर आपत्ती जताई है कि वागले ने पुरे महाराष्ट्र को बुद्धिशून्य बता दिया। वागले अभी उनके सामने बच्चे हैं अनामदासजी।
प्रशांत वानखेडे
chirfar da jawab nahi
Dear Vinodji,
Frankly speaking, I read you for the first time in your Daily 1857. I liked your editorials as I found them delightfully thought-provacative. We expect more and more from you in the future.
~Ganesh.
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