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Sunday, November 15, 2009

फिर बेपर्दा इंदिरा का सच!

खुशवंत सिंह बगैर लाग-लपेट के दो टूक शब्दों में अपनी टिप्पणी के लिए कुख्यात हैं। किसी की चिंता नहीं करते। सच कहने के अद्भुत साहस के स्वामी हैं वे। शब्दों के चयन में भी तथ्य के पक्ष में वे श्लीलता-अश्लीलता की परवाह नहीं करते। मशहूर है कि वे जो देखते हैं, पेश कर डालते हैं। जो सोचते हैं, उसे हूबहू उकेर डालते हैं। उनके इस गुण के कायलों की संख्या अनगिनत है। मैं भी उनमें एक हूं। 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की 25वीं पुण्यतिथि पर इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक शेखर गुप्ता के एक आलेख पर मैंने कुछ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं। 'इंदिरा, इंडियन एक्सप्रेस और गोयनका' शीर्षक के अंतर्गत लिखे अपने इस स्तंभ में मैंने इंदिरा गांधी के उन स्याह पक्षों को उजागर किया था जिन पर शेखर गुप्ता ने पर्दा डाल दिया था। मेरा उद्देश्य युवा पीढ़ी को इतिहास की सचाई से अवगत कराना था। पाठकों की प्रतिक्रियाएं अनुकूल रही थीं लेकिन मैं तब विचलित हो उठा था जब देखा कि लगभग सभी समाचार पत्र और टीवी चैनल शेखर गुप्ता की राह पर ही चल रहे थे। लेकिन, कुछ देर से ही सही खुशवंत सिंह ने अपने स्तंभ में इंदिरा गांधी की उन कुंठाओं की चर्चा की है जिनके कारण इंदिरा को निर्मम, कू्रर, संवेदनाहीन, ईष्र्यालु औरत के रूप में देखा गया था। संतोष हुआ कि सच को रेखांकित करने में मैं अकेला नहीं रह गया। खुशवंत सिंह ने अतिरिक्त जानकारी देते हुए बिल्कुल सही लिखा है कि कांग्रेस पार्टी को उन्होंने अपनी इच्छाओं का गुलाम बना लिया था। बेरहम प्लास्टिक सर्जरी से देश की सूरत बदल दी थी। उनके समय में चापलूसी का ऐसा आलम था कि तब के कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने इंदिराजी की जय-जयकार करते हुए कह डाला था कि 'इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया।' वह महान जननेता तो थीं किंतु निजी जिंदगी में कुंठित व ईष्र्यालु महिला थीं। वे खूबसूरत थीं किंतु दूसरों की खूबसूरती उन्हें पसंद नहीं थी। उन्हें नापसंद करती थीं, नीचा दिखाती रहती थीं। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री तारकेश्वरी सिन्हा और महारानी गायत्री देवी को उन्होंने कभी पसंद नहीं किया तो इसी कारण। अपनी बुआ विजयलक्ष्मी पंडित और चचेरी बहन नयनतारा सहगल को कभी पसंद नहीं किया। ब्रिटेन में उच्चायुक्त और तब संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर रह चुकीं विजयलक्ष्मी पंडित को इंदिरा ने कभी भी बलिष्ठ राजनयिक दायित्व नहीं दिया। नयनतारा के ईमानदार और सक्षम सिविल अधिकारी पति एन. मंगत राय को भी इंदिरा ने आगे नहीं बढऩे दिया। खुशवंत लिखते हैं कि इंदिरा बेवजह उन सभी लोगों के प्रति आक्रामक थीं जो उनके समकक्ष थे। आपातकाल के दौरान उन्होंने और उनके परिवार ने जितने लोगों को सलाखों के पीछे बंद किया, उससे किसी को भी चक्कर आ सकता है। खुशवंत सिंह की बातों को यहां उद्धृत करने के पीछे मेरा उद्देश्य यही है कि युवा पीढ़ी सत्य को जाने-समझे क्योंकि आजकल बहुसंख्यक कलमची सत्य लिखने-कहने में, अस्पष्ट कारणों से, हिचक जाते हैं। सच पर पर्दा ही नहीं डाल देते, उन्हें विकृत कर देते हैं।

2 comments:

मनोज कुमार said...

यह रचना युवा पीढ़ी को जानकारी देने के लिए लिखी गई है। फिरभी पढ़ा।

RAJ SINH said...

नंगी सच्चाई ही सही ,सच्चाई ही है .
इस चमचा संस्कृति पत्रकारिता से आप किसी भी सच्चाई की उम्मीद न रखें .