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Wednesday, November 18, 2009

अंकल सैम का बेपर्दा चेहरा!

तो अब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी अपने चेहरे से नकाब उतार ही दिया। तिब्बत को चीन का हिस्सा बताकर उन्होंने 'अंकल सैम' के विद्रूप सच को उजागर किया है। अमेरिकी मामलों पर बारीक नजर रखने वालों को अमेरिका के इस नए पैंतरे पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ होगा। और, पीड़ा तो हो रही है किंतु इस तथ्य को, कि हमारे प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को कोई आश्चर्य नहीं हुआ होगा, छुपाने के पाप का भागीदार मैं नहीं बनना चाहता। प्रधानमंत्री शायद इनकार करेंगे, ओबामा के वक्तव्य पर नाराजगी जाहिर करेंगे, लेकिन उपर्युक्त तथ्य समय आने पर सच साबित होगा। जैसा कि अन्य अवसरों पर यह बार-बार कहा गया है कि अमेरिका कभी भी भारत का नहीं हो सकता, तिब्बत पर उसके बयान ने इसे एक बार फिर प्रमाणित कर दिया। अमेरिका चाहे भारत के साथ आर्थिक और सामरिक सहयोग के पक्ष में जितनी भी बातें करे, ऐन मौके पर वह भारत के साथ दगा करने में संकोच नहीं करेगा। 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया था तब जान. एफ. केनेडी अमेरिका के राष्ट्रपति थे। भारत में उनका बहुत सम्मान था। तब के हमारे प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने बड़ी आशा और विश्वास के साथ अमेरिकी सहायता के लिए केनेडी को फोन किया था। जानते हैं केनेडी ने क्या जवाब दिया था? उनका नेहरु को जवाब था कि, '...' चूंकि हमारे अमेरिकी नागरिक आप (भारतीय) को घृणा करते हैं...उन्होंने आपके मंत्रियों को अमेरिका में वेश्यालयों से बाहर निकलते देखा है ...हम कैसे मदद कर सकते हैं।' नेहरु को गहरा सदमा पहुंचा था। लेकिन संवेदनहीन अमेरिका पर कोई असर नहीं पड़ा। उसने हमें मदद नहीं की। आज उसी अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा चीन के पक्ष में भारत को आहत करने वाला बयान देते हैं तब आश्चर्य कैसा? विश्व की एक आर्थिक ताकत बन चुका चीन स्वयं अमेरिका के लिए खतरा बनता जा रहा है। पिछले दिनों एक बहुत ही बड़ी राशि चीन बतौर कर्ज देकर अमेरिका को उपकृत कर चुका है। धन-शक्ति को सर्वोच्च समझने वाला अवसरवादी अमेरिका तब चीन के मुकाबले भारत से हाथ क्यों मिलाए? अमेरिका को यह अच्छी तरह मालूम है कि हाल के दिनों में चीन भारत को भड़काता रहा है। कतिपय भारतीय भू-भाग पर अपना दावा पेश कर चीन भारत की सार्वभौमिकता को चुनौती दे चुका है। खुफिया जानकारियों पर विश्वास करें तो चीन भारत पर हमले की तैयारी में जुटा हुआ है। ऐसे समय में अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा चीन का पक्ष लिया जाना, उसकी कुटिल रणनीति का सूचक है। अमेरिका के साथ परमाणु ऊर्जा करार को हमारे प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। संप्रग सरकार के अस्तित्व को भी दांव पर लगा दिया था। इस मुद्दे पर ही वामदलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। मनमोहन सिंह अमेरिका पर अंधविश्वास करते रहे। अमेरिकी नीयत संबंधी विपक्ष की शंकाओं को निराधार बताने वाले मनमोहन सिंह को इस मुद्दे पर भी अमेरिका ने अब मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया है। संधि पर अमेरिका अब यह कहने लगा है कि भारत पहले अप्रसार के संबंध में आश्वासन दे, तभी समझौते पर अमल किया जाएगा। उसने साफ कर दिया है कि इसके बगैर अमेरिकी कंपनियां भारत के साथ व्यापार नहीं करेंगी। साफ है कि अमेरिका ने अब संधि हो जाने के बाद परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग की जगह रोड़ा अटकाना शुरु कर दिया है। इसी बात की शंका तब विपक्ष ने जताई थी।
अभी भी विलंब नहीं हुआ है। भारत सरकार कड़ा रूख अपनाए। हम इतने कमजोर नहीं। मामला चाहे परमाणु ऊर्जा करार का हो या भारतीय भू-भाग पर चीनी नजर का, भारत सरकार देशहित में फैसला करे, पूरा देश उसका साथ देगा। अंकल सैम या चीनी ड्रैगन से डरने की कोई जरूरत नहीं।

4 comments:

मनोज कुमार said...

विचारोत्तेजक!

शरद कोकास said...

यह तो एक दिन होना ही था । यह उन लोगो के लिये सबक है जो किसी भी व्यक्ति के ग्लैमर से प्रभावित हो जाते है और उसकी विचारधारा को अनदेखा कर देते है । धन्यवाद विनोद जी - शरद कोकास दुर्ग,छ.ग.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अंकल सैम ने क्या किया यह न देखकर यह देखना चाहिए कि चीनी नेता अपना दबदबा कायम करने में कहाँ तक सक्षम है ! क्या यही अंकल सैम भारत आकर हमारे इन बिना रीढ़ की हड्डी वाले नेतावो के साथ खड़े होकर यह कह सकते है कि कश्मीर औअर अरुणांचल भारत के हिस्से है ? यह ज्यादा देखने लायक बात होनी चाहिये ! वैसे इस अंकल सैम ने अपना नकाब तो एक दिन फिंकना ही था मगर यह जानकार मुझे हँसे आई कि इसके हरकते भी बहुत कुछ हमारे देश के नेतावो से मिलती जुलती है, बिन पैंदे के लोटे की तरह कहीं भी लुड़क जाता है !

muktavani said...

Bharat ko jitnee sahayata 1962 mein mili woh amerika ya britain se. Woh to communist krisna menon ke purvagrah tha. Agar amerika ki sahayata nahin mili hoti to bharat ki durgati aur buri honi thi. Halanki ab bharat adhik samarth hai, isliye use vyavarik aur sambal kutniti ka sahara lena chaiye. Mat bhuliye Yudh ya kisi sthiti mein urja smapanta ka apna mahatva hai.