तो अब जबकि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे की गुंडागर्दी मुंबई की सड़कों से होती हुई महाराष्ट्र विधानसभा के अंदर सदन में पहुंच गई है, तब कानून के शासन के रखवाले क्या सोए ही रहेंगे? यह चुनौती है मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को, प्रोटेम विधानासभा अध्यक्ष को और चुनौती है प्रदेश की पूरी जनता को। और इन सबों से उपर चुनौती है भारतीय संविधान को। और चुनौती है संविधान की संरक्षक राष्ट्रपति और भारतीय संसद को भी। देश के संसदीय इतिहास में महाराष्ट्र विधानसभा की सोमवार की घटना में एक काला अध्याय जोड़ दिया है। चूंकि ऐसा महाराष्ट्र की सरजमीं से हुआ, प्रदेश का प्रत्येक नागरिक शर्मिंदा है राज ठाकरे के गुंडों के कृत्य पर। विगत वर्ष 26 नवंबर को महाराष्ट्र शर्मिंदा हुआ था, मुंबई पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के कारण। इससे पहले 13 दिसंबर 2001 को पूरा देश शर्मिंदा हुआ था भारतीय संसद पर पाकिस्तानी आतंकी हमलों के कारण। मैं ये उद्धरण यूं ही नहीं दे रहा हूं। 9 नवंबर 2009 की घटना उपर्युक्त दोनों घटनाओं से कहीं ज्यादा शर्मनाक और खतरनाक है। तब विदेशी आतंकवादियों ने देश पर हमला किया था। आज देसी गुंडों ने सदन के अंदर भारतीय संविधान पर हमला किया। संविधान को चुनौती देते हुए एक विधायक पर हमला किया, लात-घूसों से उसकी पिटाई की। सदन के अंदर राज भाषा और मातृभाषा को पैरों से रौंदा गया और यह सब हुआ महाराष्ट्र सरकार के गठन के बाद विधानसभा के पहले दिन मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों की उपस्थिति में। प्रोटेम विधानसभा अध्यक्ष भी मौजूद थे। अब सत्तारूढ़ कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी घटना की निंदा करते हुए कार्रवाई की बातें कर रहे हैं। क्या वे बताएंगे कि जब मनसे विधायकों ने हिंदी में शपथ ले रहे सपा विधायक अबू आजमी की लात-घूंसों से पिटाई कर रहे थे, गालियां दे रहे थे, माईक को नीचे फेंक रहे थे, तब सदन के मार्शल को कार्रवाई के आदेश क्यों नहीं दिए गए? गुंडागर्दी कर रहे उन विधायकों को सदन से बाहर क्यों नहीं निकाला गया? सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि जब राज ठाकरे ने पहले ही चेतावनी दे दी थी कि अगर अबू आजमी ने हिंदी में शपथ लिया तब मनसे विधायक उन्हें उनकी औकात बता देंगे, तब सदन के अंदर सुरक्षा के पूर्व उपाय क्यों नहीं किए गए? क्यों ठाकरे की गुंडागर्दी को मंचित होने का अवसर-समय दिया गया। निश्चय ही यह सरकार और विधानसभा सचिवालय की विफलता है। टेलीविजन के पर्दे पर गुंडागर्दी के दृश्यों को देख रहे लोग असहाय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को देख चकित थे। ऐसा नहीं होना चाहिए था। खैर, अब जबकि यह सब हो ही गया तब सभी कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सभी संविधान विशेषज्ञ और राजनेता एकमत हैं कि गुंडागर्दी करने वाले मनसे विधायकों और राज ठाकरे के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए। मनसे विधायकों को पूरे कार्यकाल तक के लिए निलंबित कर दिया जाए और राज ठाकरे को गिरफ्तार किया जाए। क्या सरकार ऐसी हिम्मत दिखाएगी? मैं बता दूं कि अगर सरकार इस मुकाम पर पीछे हटती है तब आने वाले दिनों में महान महाराष्ट्र के माथे पर एक बदनुमा दाग लग जाएगा- भाषा और क्षेत्रीयता के आधार पर देश को खंडित करने का। वह दिन अत्यंत ही दु:खद होगा क्योंकि महाराष्ट्र के शांतिप्रिय नागरिक ऐसा नहीं चाहते।
(ताजा जानकारी के अनुसार मनसे के 4 विधायकों को 4 वर्ष के लिए निलंबित कर दिया गया है। साथ ही मुख्यमंत्री ने राज ठाकरे पर भी कार्रवाई के संकेत दिए।)
राज ठाकरे पर देशद्रोह का मुकदमा चले!
खैर, अब कुछ गुंडों को सजा मिली, किंतु निलंबन नाकाफी है। निलंबन से कानून और संविधान की आत्मा संतुष्ट नहीं होगी। जरुरी है कि पूरी घटना के सूत्रधार राज ठाकरे और संविधान का मर्दन करने वाले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के विधायकों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए। कानून की अन्य धाराओं के अलावा इन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाया जाए। कार्रवाई तत्काल हो, क्योंकि राज ठाकरे एवं उनके मवाली समर्थक शांत होते नहीं दिख रहे। निलंबन के बाद उनके एक विधायक के ये शब्द कि, 'हमने मनसे की भाषा में उन्हें (अबू आजमी को) सीख दे दी है', उनकी मंशा को चिन्हित करने वाला है। साफ है कि ये मानने वाले नहीं हैं। इनकी भाषा गुंडों की भाषा है और व्यवहार देशद्रोही का। राज ठाकरे ने तो पहले ही हिंदी में शपथ लेने वालों को (अंजाम) की चेतावनी दे दी थी। मराठी अस्मिता अथवा प्रेम का इनका दावा खोखला है, दिखावा है। इनका विरोध राजभाषा हिंदी से है। सदन के अंदर अनेक विधायकों ने मराठी से इतर अंग्रेजी में शपथ ली। ठाकरे के गुर्गों ने उनका विरोध नहीं किया। क्या अंग्रेजी में शपथ लेकर मराठी का मान बढ़ाया? हिंदी में शपथ लेने वाले का ही विरोध क्यों? राज ठाकरे देश को मूर्ख समझने की गलती न करें। क्योंकि मूर्ख वे स्वयं हैं। मवाली तो वे हैं ही। उन्होंने यह कहकर कि एकमात्र मराठी ही महाराष्ट्र की राजभाषा है, अपनी अज्ञानता और मूर्खता का परिचय दिया है। वे संविधान की धारा 343-352 का अध्ययन कर लें। अगर अभी तक उन्हें नहीं मालूम था तो मालूम हो जाएगा कि भारतीय संविधान में यह स्पष्टत: उल्लेखित है कि देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी संघ (भारत) के प्रशासन की भाषा होगी। तब संविधान सभा के अध्यक्ष डा, राजेंद्र प्रसाद ने स्पष्ट किया था कि 'अंग्रेजी के स्थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है। इससे अवश्यमेव हमारे संबंध घनिष्टतर होंगे, विशेषत: इसलिए कि हमारी परंपराएं एक ही हैं, हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही है। अतएव यदि हम इस सूत्र को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि इस देश में बहुत सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते। हमने यथासंभव बुद्धिमानी का कार्य किया है और मुझे हर्ष है, मुझे प्रसन्नता है और मुझे आशा है कि भावी संतति इसके लिए हमारी सराहना करेगी। ' राज ठाकरे इन शब्दों के अर्थ-मर्म को समझ नहीं पाएंगे। भला एक अज्ञानी जो गुंडागर्दी के मार्ग को अपनी राजनीतिक सफलता के लिए अपना लेता है, उससे देश के कानून और संविधान के प्रति सम्मान की आशा की ही कैसे जा सकती है। राज ठाकरे संविधान को नकार कर देशद्रोही की भूमिका में आ गए हैं। इनके साथ व्यवहार देशद्रोही सरीखा ही हो। तभी देशवासी संतुष्ट हो पाएंगे।
4 comments:
कौंग्रेस की जय हो, बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाए ?
पहलॆ हम भारतीय़ हॆ,उसकॆ बाद हम प्रातवालॆ हे,हंमे लगता हे कि अब MAHARASTRA भी PUNJAB की भी राह पर चल चुका हे,
http://manavdharm.blogspot.com/
अभी तो ली अंगडाई है
आगे बड़ी लडाई है
राज ठाकरे का यह कदम उन
मराठी भाषी को परेशानी देगा जो महाराष्ट्र से बहाr hae
बस दस पंद्रह साल और इंतजार.... एक छोटा-मोटा गृहयुद्घ और भारत कई टुकडों में बिखर जाएगा
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