Thursday, November 12, 2009
उपचुनाव परिणाम का असली सच!
गोद लिए खबरियों को फिलहाल भूल जाएं। उनके द्वारा दी गईं, दी जा रहीं खबरों विश्लेषणों को भी कोष्ठक में डाल दें। उन्होंने तो आईना देखना ही छोड़ दिया है, आईना दिखाएंगे कैसे? फिर क्या आश्चर्य कि वे स्वयं को ही नहीं पहचान पा रहे। उतरन के उपयोग में ऐसा ही होता है। सात राज्यों के उपचुनावों के परिणाम से संबंधित खबरों-विश्लेषणों को देख लें, सब कुछ साफ हो जाएगा। इन्होंने पूरे देश में लोकसभा चुनाव के समय से उत्पन्न कथित कांग्रेस लहर की मौजूदगी को मोटी रेखा से चिन्हित कर दिया है। सुर्खियां बनीं कि कांग्रेस ने वामदलों, भारतीय जनता पार्टी का सुपड़ा साफ कर दिया। परिणाम ने यह साबित कर दिया कि अब मतदाता की पहली पसंद कांग्रेस ही है। आने वाले दिनों में हर जगह कांग्रेस और सिर्फ कांग्रेस की मौजूदगी दर्ज होगी। उपचुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा। कैसे? सही विश्लेषण ये खबरची बेचारे करें तो कैसे? फिर उतरन का क्या होगा! लेकिन तटस्थ विश्लेषक अपना दायित्व अवश्य निभाएंगे। कांग्रेस को 31 सीटों में से 10 सीटों पर सफलता मिली-सात राज्यों में। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए। मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने 9 सीटों पर कब्जा किया। कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली। क्या इसे कांग्रेस के पक्ष में बयार निरुपित किया जा सकता है। ध्यान रहे, इन 11 सीटों में से बसपा के पास सिर्फ एक सीट थी। उसने उस सीट के अलावा अन्य 8 सीटों पर कब्जा किया। क्या इसे बसपा की बड़ी सफलता नहीं कहेंगे। निश्चय ही परिणाम और रूझान से यही साबित हुआ कि प्रदेश की जनता का बसपा पर भरोसा कायम है। मायावती नेतृत्व की बसपा सरकार पर लगाए गए भ्रष्टाचार, जातीयता, निक्कमापन और पक्षपात संबंधी सभी कांग्रेसी आरोपों को जनता ने खारिज कर दिया। आश्चर्य है कि बसपा की इस बड़ी उपलब्धि की उपेक्षा कर फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर कांग्रेस की जीत को महिमामंडित किया गया। समाजवादी पार्टी से इस सीट को छीनकर निश्चय ही कांग्रेस ने बड़ी सफलता हासिल की है, किंतु यह कहना सरासर गलत होगा कि प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के पक्ष में जनादेश दिया है। फिरोजाबाद का परिणाम वस्तुत: मतदाता की परिपक्वता का एक सुखद उदाहरण है। मतदाता ने साफ संदेश दे दिया है कि वह प्रदेश में परिवारवाद को प्रश्रय देने के मूड में नहीं है। और यह भी साफ हो गया कि वस्तुत: जनता ने प्रदेश में भाजपा, सपा के साथ-साथ कांग्रेस को भी नकार दिया। वैसे परिणाम कांग्रेस के लिए भी एक संदेश है। कांग्रेस की ओर से टिप्पणी की गई है कि मुलायम यादव ऐसे व्यक्ति के नाम (राममनोहर लोहिया) के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, जिन्होंने राजनीति में संतति और संपत्ति का मोह त्याग देने की बात कही थी। यह भी कहा गया कि जब कैडर और प्रशासन में अंतर कम हो जाता है तब लोकतंत्र को खतरा पैदा हो जाता है। इस विंदु पर मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि जो सरमन कांग्रेस सपा को दे रही है उस कसौटी पर स्वयं को कस कर देखे। क्या संतति, संपत्ति और प्रशासन कांग्रेस के पर्याय नहीं बन गए हैं? कांग्रेस दो-धारी तलवार भांज रही है। फिरोजाबाद में उसने मुलायम यादव के परिवारवाद और विकास के नाम पर चुनाव लड़ा था। आने वाले दिनों में कांग्रेस इसी मुद्दे पर मतदाता के सवाल देने के लिए तैयार रहे। परिणाम उसके सामने है। पश्चिम बंगाल में वाम दलों को ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने पछाड़ा है, कांग्रेस ने नहीं। यह ठीक है कि वहां तृणमूल के साथ कांग्रेस का गठबंधन है किंतु चुनाव दौरान उनके बीच की दूरी को सभी देख चुके हैं। वहां संपन्न 10 उपचुनाव में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली, तृणमूल कांग्रेस को सात। वहां भी कोई कांग्रेसी बयार नहीं बही। शेष अन्य 5 राज्यों के 10 सीटों की बात करें तो केरल में कांग्रेस को प्राप्त तीनों सीटों पर उसका पहले से कब्जा था। शेष सीटों की भी स्थिति कमोबेश ऐसी ही रही। फिर उपलब्धि के नाम पर कांग्रेसी डुगडुगी का औचित्य? हां, यह सच अवश्य रेखांकित होगा कि कांग्रेस की ओर से प्रचार अभियान का नेतृत्व करने वाले राहुल गांधी शनै:-शनै आमलोगों की पसंद बनते जा रहे हैं। लेकिन भारत जैसे विविधता वाले बड़े देश में पूर्ण स्वीकृति के लिए यह नाकाफी है। राजनीतिक सर्कस से पृथक आम लोगों के लिए आम आदमी बनकर ही देश को जीता जा सकता है। युवराज बनकर नहीं। राहुल व उनके सलाहकार इस शाश्वत सत्य को ह्रदयस्थ कर लें।
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1 comment:
बहुत सुन्दर विवरण व विवेचन , मगर क्या करे कभी कभार जनता पर ही गुस्सा आता है , भेडों के झुंड है !!
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