धिक्कार है! धिक्कार है शिवसेना पर और धिक्कार है इसके प्रमुख की सोच पर! सिर्फ मीडिया में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को पीछे छोड़ आगे जगह पाने के लिए पूरे देश में महाराष्ट्र को शर्मसार कर डाला! एक सौ चौसठ हुतात्माओं की बार-बार याद दिलाने वाली शिवसेना यह जान ले कि उसकी इस ताजा हरकत से ये हुतात्माएं भी दुखी हुई होंगी। उन्हें भी चोट पहुंची होगी।
बाल ठाकरे ने सचिन तेंदुलकर पर शब्द-बाण सिर्फ इसलिए चलाए थे कि मीडिया में उन्हें और शिवसेना को सुर्खियां मिल सके। ऐसी सुर्खियां कि राज ठाकरे मीडिया की नजरों से ओझल हो जाए। इस तथ्य को और कोई नहीं, बेशर्मों की तरह शिवसैनिक ही स्वीकार कर रहे हैं। शिवसेना की हो रही राष्ट्रीय आलोचना पर मुदित शिवसेना की टिप्पणी देखें-''...हालांकि हमारी आलोचना हुई और हमें नकारात्मक प्रचार मिला, लेकिन इस घटना ने शिवसेना को पुन: मीडिया की नजरों में ला दिया।'' यह बताकर शिवसैनिक खुश हो रहे हैं। पिछले दिनों महाराष्ट्र विधानसभा के अंदर राज ठाकरे के मनसे विधायकों द्वारा समाजवादी पार्टी के अबू आजमी के साथ की गई मारपीट व हंगामे के बाद मीडिया में मनसे छाई रही। शिवसेना इससे परेशान हो उठी थी। तो क्या मीडिया में जगह पाने के लिए या दूसरे को पछाडऩे के लिए अभद्र आचरण का वरण कर लिया जाना चाहिए? कदापि नहीं! विचार मंथन मीडिया भी करे। क्या ऐसे लोगों को मीडिया में जगह मिलनी चाहिए? नकारात्मक सोच और अभद्र कृत्य दिखा-पढ़ा कर टीआरपी व प्रसार में वृद्धि तो की जा सकती है किंतु निश्चय मानिए इससे समाज का अहित ही होता है। नकारात्मक सोच से विकास अवरूद्ध होता है। अज्ञानता का प्रसार होता है। फिर इसके भागीदार हम क्यों बनें? अब तक तो सार्वजनिक रूप से टिप्पणियां हो रही हैं कि मीडिया में गलत व अज्ञानी लोगों की पैठ बढ़ती जा रही है। क्यों? ऐसे तत्वों को प्रोत्साहन कौन व क्यों दे रहा है? यह विचारणीय है। मीडिया मौन न रहे। जवाबदेही का परिचय देते हुए इसका समाधानकारक उत्तर दे। यह संभव है। जरूरत है, मौन तोड़कर मुखर होने की। पिछले दिनों मीडियाकर्मियों के एक कार्यक्रम में एक बड़े मराठी दैनिक के एक बड़े संपादक को पाकिस्तानी समाचार-पत्रों की स्थिति पर शत-प्रतिशत गलत आंकड़ों के साथ बोलते सुना। मंच पर एक बड़े दैनिक के मालिक और वरिष्ठ पत्रकार उपस्थित थे। देखकर पीड़ा हुई, मन खिन्न हो उठा कि सभी चुपचाप गलत आंकड़ों वाले भाषण को सुन रहे थे। तालियां भी बजा रहे थे। एक भयंकर गलती को ऐसी मंचीय स्वीकृति? इसी तरह का एक और पत्रकारीय आयोजन। जेसिका लाल की हत्या के दोषी पेरोल पर छूटे मनु शर्मा को पिछले दिनों दिल्ली के एक नाइट क्लब में देखे जाने और दूसरे दिन पेरोल अवधि की समाप्ति के पूर्व ही तिहाड़ जेल में समर्पण कर दिए जाने की घटना की चर्चा करते हुए आयोजन में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा श्रेय लिया जा रहा था। वक्ता मीडियाकर्मियों ने गर्व के साथ मनु शर्मा को समर्पण करने के लिए मजबूर करने का श्रेय लिया, जबकि इस मामले में मीडिया कर्तव्य से भागने का दोषी है। मनु शर्मा पिछले 22 सितंबर को जेल से बाहर आया था। पेरोल की शर्त के मुताबिक वह चंडीगढ़ से बाहर नहीं जा सकता था। लेकिन, वह इस शर्त का उल्लंघन कर विधानसभा चुनाव में अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र अंबाला शहर में खुलेआम प्रचार करते देखा गया। तब कहां था मीडिया? वह सितंबर माह में ही पेरोल पर बाहर निकला था, तब मीडिया अनभिज्ञ कैसे रहा? अदालतों में उसकी हर सुनवाई पर नजर रखने वाला मीडिया इतने दिनों तक जेल से बाहर घूमने वाले मनु शर्मा को देख क्यों नहीं पाया? आरोप लगे हैं कि तब किन्हीं कारणों से मीडिया ने जान-बूझकर आंखें बंद कर रखी थीं। क्या थे वे कारण? कोई बताएगा? अगर दिल्ली के एक होटल में मनु शर्मा व उसके मित्र की दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के बेटे से झड़प नहीं हुई होती और पुलिस मौके पर नहीं पहुंचती तो मीडिया में खबर ही नहीं बनती। उसके तिहाड़ जेल में समर्पण का श्रेय मीडिया न ले। बल्कि वह जवाब दे कि 22 सितंबर से 11 नवंबर तक मीडिया ने आंखों पर पट्टी क्यों बांध रखी थी? सचमुच, जरूरी यह है कि हम पहले अपने घर को दुरूस्त करें। जब हम स्वयं ही खुद को 'उपयोग' में लाने के लिए उपलब्ध कराते रहेंगे, तब हम अपने दुरुपयोग से बच कैसे सकते हैं। बाल ठाकरे व उनकी शिवसेना ने ऐसी ही स्थिति का फायदा उठाकर तो हमारा 'उपयोग' कर डाला। क्या यही हमारी हैसियत है? झूठ और अज्ञानता के प्रसार के दोषी हम भी हैं।
2 comments:
बिल्कुल सटीक बात कही आपने ....काश कि हमारा मीडिया कभी ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपनी पहुंच बना पाता और देख पाता कि वहां की दशा क्या है ...मगर इसके लिए फ़ुर्सत मिले तो न ..सार्थक लेख
लुप्त मीडिया धर्म है न जनता से प्यार।
धन का जो संग्रह के वह बेहतर अखबार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
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