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Saturday, November 7, 2009

राज? नहीं! तो फिर शिवराज??

मुझे दुख तो हुआ ही, आश्चर्य अधिक कि मध्यप्रदेश के शिष्ट-शालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज ठाकरे की राह पर कैसे चल पड़े? क्या देश लालू यादव के शब्दों पर विश्वास कर यह मान लें कि राज की तरह शिवराज भी अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं? मैं बार-बार यह दोहराता रहा हूं कि क्षेत्रीयता का जहर साम्प्रदायिकता के जहर से कहीं अधिक घातक होता है। संक्रामक रोग है यह। तभी तो यह महाराष्ट्र से फैलता हुआ मध्यप्रदेश पहुंच गया। शिवराज ने सतना की एक सभा में कह डाला कि मध्यप्रदेश में उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूर नहीं चलेंगे। उन्हें निकाल बाहर किया जाएगा। मध्य प्रदेश में सिर्फ स्थानीय को नौकरी दी जाएगी। राष्ट्र से पृथक घोर क्षेत्रीयता से ओत-प्रोत शिवराज सिंह चौहान के शब्दों की उसी तर्ज पर भत्र्सना होगी जिस तर्ज पर महाराष्ट्र के राज ठाकरे के शब्दों की होती रही है। शिवराजजी! राज ठाकरे को मीडिया भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा मवाली निरूपित कर चुका है। राज की राह पर चलकर आप अपने खाते में क्या डालना चाह रहे हैं? राष्ट्रीयता के पक्ष में पूर्णत: समर्पित भारतीय जनता पार्टी शासित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के मुख से संक्रामक क्षेत्रीयता की बातें देश स्वीकार नहीं कर सकता। शिवराज ने पता नहीं किस जुनून में ऐसे आपत्तिजनक राष्ट्रविरोधी शब्द उगल डाले। उनकी तरफ से सफाई तो आई है किन्तु पूरे देश ने टेलीविजन पर उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूरों के खिलाफ बोलते देखा-सुना है। साफ है कि उनकी बातों के खिलाफ पूरे देश में हुई तीखी प्रतिक्रिया से वे सहम गए। कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालूप्रसाद यादव, बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार, लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान और उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रीता बहुगुणा ने चौहान को मुख्यमंत्री पद से हटाने और देश से क्षमा मांगने की बिल्कुल सही मांग की है। एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति ने घोर असंवैधानिक वक्तव्य देकर स्वयं अपनी पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने पूरे मामले को 'एक बड़ी गलतफहमी' बताकर पार्टी को बचाने की कोशिश की है। क्या शिवराज सिंह चौहान के पाश्र्व को देखते हुए एक बार उन्हें संदेह का लाभ दे दिया जाना चाहिए? मैं इस पक्ष में हूं। शर्त यह कि शिवराज सिंह चौहान स्वयं स्थिति साफ करते हुए देश से माफी मांग लें। देश, संविधान और उनकी भारतीय जनता पार्टी के हित में यही होगा।

1 comment:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

ये सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे है, बस दाल गलाने को बैठे अलग अलग चूल्हों पे है, क्या राज क्या शिवराज क्या कौंग्रेस क्या बीजेपी , हां हँसी यह देखकर आती है जब सारी राजनीति की मुसेबतो की जड़ और महाराष्ट्र में राज की पीठ थपथपाने वाली कौंग्रेस इस बात पर एम् पी में बीजेपी की बुराई करने में ज़रा भी देर नहीं लगाती !